Rajasthan: राजस्थान में छोटे जिलों पर पुनर्गठन की तलवार! उपचुनाव बाद बदल सकता है नक्शा, जानिए कौन से जिले होंगे प्रभावित!”

Rajasthan small districts threat: राजस्थान की राजनीति में जिलों के पुनर्गठन को लेकर एक बड़ा बदलाव सामने आ सकता है, जो आगामी चुनावों में राजनीतिक समीकरणों को नई दिशा देने का माद्दा रखता है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा जनता की सुविधा के (Rajasthan small districts threat) नाम पर बनाए गए नए जिलों पर अब पुनर्विचार की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। मंत्रियों की कमेटी, जो उपचुनाव के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, का मानना है कि मापदंडों पर खरे न उतरने वाले छोटे जिलों का अस्तित्व समाप्त कर उन्हें बड़े जिलों में मर्ज करना ही सही फैसला होगा।

कमेटी के कुछ सदस्यों का मानना है कि इन छोटे जिलों का न तो क्षेत्रफल बड़ा है और न ही जनसंख्या का मापदंड पूरा हो रहा है, ऐसे में इन जिलों का अलग अस्तित्व रखना केवल प्रशासनिक बोझ बढ़ाने जैसा है। गहलोत सरकार के इस फैसले का राजनीतिक असर गहरा हो सकता है, क्योंकि छोटे जिलों के प्रतिनिधियों और वहां की जनता में असंतोष बढ़ सकता है। यह कदम एक तरफ विपक्ष को चुनावी मुद्दा देगा, तो दूसरी ओर गहलोत सरकार को नए जिलों की पैरवी करने वाले नेताओं के गुस्से का सामना भी करना पड़ सकता है।

विधानसभा क्षेत्र जितने छोटे जिलों का अस्तित्व खतरे में, उपचुनाव बाद बड़ा फैसला!

गहलोत सरकार के कार्यकाल में बनाए गए छोटे जिलों जैसे दूदू, सांचौर, गंगापुर सिटी, शाहपुरा और केकड़ी का भविष्य अधर में है। इन जिलों का क्षेत्रफल बेहद कम है, और कई तो केवल एक विधानसभा क्षेत्र जितने ही हैं। मंत्रियों की रिव्यू कमेटी ने भी यह माना है कि इतने छोटे जिलों को बनाए रखना प्रशासनिक दृष्टि से सही नहीं है। इस मुद्दे पर सियासी गर्माहट के बीच उपचुनाव के बाद बड़ा फैसला हो सकता है।

पंवार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार हुई मंत्रियों की सिफारिशें

पूर्व आईएएस अधिकारी ललित के पंवार की अगुवाई में बनी कमेटी ने गहलोत सरकार द्वारा बनाए गए सभी जिलों का गहन विश्लेषण किया था। कमेटी ने हर जिले का दौरा कर स्थानीय नागरिकों और प्रशासनिक अधिकारियों से चर्चा कर रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें जिलों के मापदंड, जनसंख्या और क्षेत्रफल जैसे पहलुओं पर गौर किया गया। इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर मंत्रियों की रिव्यू कमेटी ने अपने सुझाव तैयार किए हैं, जो कई छोटे जिलों के मर्ज होने का संकेत दे रहे हैं।

दूदू का मामला गर्माया, संयोजक पद से हटे डिप्टी सीएम बैरवा

दूदू का मामला खासा विवादित रहा है। रिव्यू कमेटी के पूर्व संयोजक और दूदू विधायक प्रेमचंद बैरवा को इस मुद्दे पर हटाकर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को जिम्मेदारी सौंपी गई। माना जा रहा है कि दूदू जिले को मापदंडों पर खरा न उतरने के चलते मर्ज किया जा सकता है। इस बदलाव ने दूदू को मर्ज किए जाने की संभावना को और पुख्ता किया है, जिससे स्थानीय राजनीति में खलबली मच गई है।

छोटे जिलों को खत्म करने के खिलाफ स्थानीय विरोध, सियासत में गर्माहट

गंगापुर सिटी, सांचौर और अन्य छोटे जिलों को मर्ज करने के मुद्दे पर पहले ही विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इन जिलों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए धरने प्रदर्शन किए हैं। ऐसे में, गहलोत राज में बने इन जिलों के भविष्य पर कोई भी फैसला राजनीतिक विवाद को और गहरा सकता है, जिससे राज्य में सियासी समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं।

31 दिसंबर से पहले जिलों पर अंतिम निर्णय अनिवार्य

सरकार के पास 31 दिसंबर तक का समय है कि वो इन जिलों का भविष्य तय करे। 1 जनवरी 2025 से नए प्रशासनिक यूनिट बनाने और उनकी सीमाओं में बदलाव करने पर रोक लग जाएगी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस बारे में छूट मांगी थी, जिसके बाद दिसंबर तक के लिए अनुमति मिली है। सरकार इस समय सीमा के भीतर छोटे जिलों को मर्ज करने और पुनर्गठन का ऐतिहासिक फैसला ले सकती है, जो राजस्थान की प्रशासनिक संरचना में बड़े बदलाव का संकेत देता है।

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Bodh Saurabh

Bodh Saurabh, a journalist from Jaipur, began his career in print media, working with Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika, and Khaas Khabar.com. With a deep understanding of culture and politics, he focuses on stories related to religion, education, art, and entertainment, aiming to inspire positive change through impactful reporting.

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