
National Herald Case: भारतीय राजनीति में इतिहास और वर्तमान अक्सर आमने-सामने खड़े हो जाते हैं, और जब किसी बड़े नेता का बयान अतीत की परतों को उघाड़ता है, तो सियासी माहौल गरमा जाता है। नेशनल हेराल्ड केस को लेकर चल रहे विवाद के बीच भारतीय जनता पार्टी के प्रखर वक्ता एवं राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने न केवल इस मुद्दे पर कांग्रेस के आंदोलन को सवालों के घेरे में रखा, बल्कि जवाहर लाल नेहरू को लिखी गई सरदार वल्लभभाई पटेल की चिट्ठी का हवाला देते हुए पार्टी की सोच, चरित्र और राजनीतिक दृष्टिकोण पर भी गंभीर आरोप लगाए।
त्रिवेदी का तंज इस ओर इशारा करता है कि नेशनल हेराल्ड अखबार का (National Herald Case) बंद होना कोई संयोग नहीं, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व की उपेक्षा और विचारहीनता का परिणाम था। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस के मात्र 10% कार्यकर्ता भी इस अखबार को खरीदते, तो इसे बचाया जा सकता था। लेकिन सच यह है कि कांग्रेस चाहती ही नहीं थी कि यह अखबार चले — और यही रवैया उसकी मानसिकता को उजागर करता है।
यह टिप्पणी न केवल वर्तमान राजनीति को कटघरे में खड़ा करती है, बल्कि यह बताती है कि कैसे ऐतिहासिक दस्तावेज़ और व्यक्तित्व आज भी सियासी विमर्श को दिशा देने की ताकत रखते हैं।
एक ही व्यक्ति खरीदार और विक्रेता कैसे?
भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने नेशनल हेराल्ड केस पर कांग्रेस पार्टी को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यह मामला अपने आप में बेहद विचित्र और संदेहास्पद है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर कैसे संभव है कि एक ही व्यक्ति किसी संपत्ति का खरीदार भी हो और विक्रेता भी? जिस कंपनी की कीमत मात्र 90 करोड़ रुपए में तय की गई, उसके पास हजारों करोड़ की संपत्ति है…तो फिर यह सौदा किसके हित में था?
त्रिवेदी ने चुटकी लेते हुए पूछा कि क्या कांग्रेस का कोई भी नेता अपने ही पार्टी के अखबार को बचाने के लिए आगे नहीं आया? उन्होंने कहा कि जब राजीव गांधी फाउंडेशन को भारी-भरकम चंदा मिल रहा था, तब भी कौमी अखबार तक को कोई खरीदने नहीं आया। यह कांग्रेस की प्राथमिकताओं और विचारधारा पर गहरा सवाल खड़ा करता है।
सांसद ने आगे कहा कि कांग्रेस आज इस मुद्दे पर देशभर में प्रदर्शन कर रही है, लेकिन सच यह है कि पार्टी ने अपनी विरासत को खुद ही नष्ट किया। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए बताया कि 5 मई 1950 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने नेहरू को पत्र लिखकर इस विषय पर आपत्ति जताई थी, और उसी दिन नेहरू ने उसका जवाब भी दिया था। यह दर्शाता है कि उस समय भी इस अखबार को लेकर गंभीर मतभेद और चिंताएं थीं।
सरदार पटेल ने नेहरू को चेताया था, हेराल्ड को चैरिटी न बनाएं
भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने नेशनल हेराल्ड केस पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वयं जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर आपत्ति जताई थी। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि यह एक स्वतंत्रता सेनानी का अखबार है, इससे सरकारी लोगों का सीधे तौर पर जुड़ना उचित नहीं है।
त्रिवेदी ने आगे कहा कि पटेल ने एक और चिट्ठी में यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले को चैरिटी का विषय नहीं माना जाना चाहिए। वहीं जवाहरलाल नेहरू ने जवाब में हेराल्ड को “गुड बिजनेस” करार दिया और उसमें निवेश को व्यावसायिक दृष्टिकोण से सही ठहराया।
अब सवाल ये उठता है कि जिस विषय पर सरदार पटेल और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद रहे, उस पर आज कांग्रेस भावनात्मक रंग क्यों चढ़ा रही है? क्या यह केवल अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने का एक प्रयास है?
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