
Kailash Mansarovar Yatra 2025: कई यात्राएं शरीर को थकाती हैं, लेकिन कुछ यात्राएं आत्मा को शांत करती हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा उन्हीं में से एक है। भगवान शिव का धाम…कैलाश पर्वत, और अमृत से पवित्र…मानसरोवर झील, सदियों से श्रद्धालुओं के लिए भक्ति, साहस और मोक्ष की परिभाषा रहे हैं। (Kailash Mansarovar Yatra 2025) अब पांच वर्षों की प्रतीक्षा के बाद, इस पावन यात्रा के द्वार फिर से खुलने जा रहे हैं।
30 जून से फिर शुरू होगी यात्रा
2020 में कोविड-19 के कारण स्थगित हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा 30 जून 2025 से एक बार फिर शुरू होगी। उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के रास्ते भारत से चीन के तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश और मानसरोवर तक यह यात्रा जाएगी। हाल ही में दिल्ली में हुई उच्च स्तरीय बैठक में यात्रा की सभी तैयारियों की समीक्षा की गई।
क्यों रुकी थी यात्रा?
इस पवित्र यात्रा पर पहला ब्रेक लगा कोविड-19 महामारी के कारण। उसके बाद भारत-चीन के बीच गलवान घाटी में सैन्य तनाव और सीमा विवाद ने इसे और टाल दिया। पांच वर्षों तक श्रद्धालु प्रतीक्षा करते रहे—कभी महामारी, कभी कूटनीति की जटिलता। लेकिन अब भारत सरकार के मजबूत प्रयासों के चलते 2025 में यह संभव हो पाया।
कैलाश और मानसरोवर, चीन के तिब्बत क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में यात्रा का होना भारत और चीन के बीच आपसी सहमति के बिना संभव नहीं। यात्रा को हरी झंडी मिलना इस बात का संकेत है कि धार्मिक और सांस्कृतिक स्तर पर संवाद और सहयोग की एक रेखा फिर से खिंची गई है।
यात्रा का रूट और योजना
कुल यात्री: 250
समयावधि: 22 दिन
दलों में विभाजन: 5 दल, प्रत्येक में 50 यात्री
यात्रा मार्ग…
दिल्ली → टनकपुर (1 रात)
धारचूला (1 रात)
गुंजी (2 रातें)
नाभीढांग (2 रातें)
फिर लिपुलेख दर्रे से तकलाकोट (तिब्बत) में प्रवेश
कैलाश मानसरोवर के दर्शन
वापसी मार्ग: बुंडी → चौकोरी → अल्मोड़ा → दिल्ली
स्वास्थ्य जांच और व्यवस्था
इस कठिन हिमालयी यात्रा के दौरान यात्रियों की सुरक्षा सर्वोपरि है। दिल्ली और गुंजी में मेडिकल जांच की व्यवस्था की गई है। यात्रा का संपूर्ण प्रबंधन कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) के जिम्मे होगा।
हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना गया है। यहां की परिक्रमा और मानसरोवर में स्नान मोक्ष का मार्ग कहा जाता है। जैन, बौद्ध और तिब्बती बोन धर्म के अनुयायी भी इसे पवित्र मानते हैं। यही कारण है कि यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव बन जाती है।
कूटनीतिक धरातल पर यात्रा का संदेश
कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से शुरू होना केवल एक धार्मिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि भारत और चीन के बीच सीमित लेकिन सकारात्मक संवाद फिर से कायम हो रहा है। ऐसे समय में जब वैश्विक कूटनीति तनावों से भरी है, यह यात्रा शांति, सहमति और श्रद्धा का संदेश बन सकती है। पांच सालों तक जिनकी आंखें कैलाश की ओर टकटकी लगाए थीं, अब वे चल पड़ेंगे—बर्फ से ढकी शिव की पवित्र छाया में। ये सिर्फ यात्रा नहीं, एक बुलावा है… शिव का! और जिसे ये बुलावा मिल गया, उसका जीवन कभी पहले जैसा नहीं रहेगा।
यहां से करे आवेदन : https://kmy.gov.in/kmy/howToApply?lang=en