जहां स्वयंभू प्रकट हुईं माँ भ्रामरी, वहां हर नवरात्रि भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है, जानें इसका इतिहास!

Janasthan Shakti Peetha: हिंदू धर्म में शक्ति की उपासना का विशेष महत्व है, और शक्ति पीठों को देवी के दिव्य स्थलों के रूप में पूजा जाता है। यह स्थल भक्तों की आस्था और श्रद्धा के केंद्र होते हैं, जहां देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए हजारों भक्त नतमस्तक होते हैं। मान्यता है कि ये शक्ति पीठ वे पवित्र स्थान हैं, (Janasthan Shakti Peetha)जहां माता सती के अंग या आभूषण गिरे थे, जब भगवान शिव उनके वियोग में तांडव कर रहे थे।

जनस्थान शक्ति पीठ: एक पावन धाम

ऐसे ही 51 शक्ति पीठों में से एक है जनस्थान शक्ति पीठ, जो महाराष्ट्र के नासिक के पंचवटी क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान देवी भ्रामरी को समर्पित है और यहां माता सती की “ठोड़ी” गिरी थी। पौराणिक कथाओं और श्रद्धा से ओत-प्रोत इस शक्ति पीठ का विशेष महत्व है, विशेष रूप से नवरात्रि के समय, जब हजारों भक्त यहां मां के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। जनस्थान शक्ति पीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति का केंद्र भी है।

जनस्थान शक्तिपीठ का महत्व

जनस्थान शक्ति पीठ महाराष्ट्र के नासिक स्थित पंचवटी क्षेत्र में स्थित है, जहां देवी सती की “ठोड़ी” गिरी थी। यहां देवी को “भ्रामरी” के रूप में और भगवान शिव को “विकृताक्ष” के रूप में पूजा जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है— “चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले”, अर्थात यहां माता का चिबुक (ठोड़ी) शक्ति रूप में प्रकट हुआ था।

इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि इसमें शिखर नहीं है। मंदिर में नवदुर्गा की मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें से भद्रकाली की विशाल मूर्ति विशेष रूप से पूजनीय है। देवी भ्रामरी का नाम संस्कृत शब्द “ब्रह्मारी” से लिया गया है, जिसका अर्थ मधुमक्खियों से जुड़ा हुआ है। इन्हें काली मधुमक्खियों की देवी और माँ कालिका का प्रतीक माना जाता है। देवी की पूजा में “हृंग” ध्वनि का उच्चारण किया जाता है, जो उनका बीज मंत्र भी माना जाता है।


जनस्थान शक्ति पीठ का नाम कैसे पड़ा?

इस क्षेत्र का नाम “नासिक” पड़ा क्योंकि यहां नौ छोटी पहाड़ियां हैं। “नव” + “शिखर” से बना नासिक नाम इन पहाड़ियों की विशेषता को दर्शाता है। इन पहाड़ियों पर माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।

जनस्थान शक्ति पीठ में मां भ्रामरी की प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है। मंदिर का निर्माण 1790 ईस्वी में सरदार गणपतराव पटवर्धन दीक्षित ने करवाया था। इतिहास के अनुसार, यवनों के आक्रमण के डर से इस मंदिर पर कोई शिखर स्थापित नहीं किया गया था, इसलिए यह बिना शिखर का मंदिर है। मंदिर में पंचधातु से निर्मित माँ भ्रामरी की 38 सेंटीमीटर (15 इंच) ऊंची प्रतिमा विराजमान है, जिनकी 18 भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए गए हैं।


मंदिर में पूजा एवं अनुष्ठान

देवी भ्रामरी की पूजा विशेष रूप से सप्तश्रृंगी देवी के रूप में की जाती है, क्योंकि यह मंदिर सात शिखरों से घिरा हुआ है। यहां सदियों से अभिषेक की परंपरा चली आ रही है, जिसमें माता को प्रतिदिन स्नान कराकर नवीन वस्त्र एवं श्रृंगार अर्पित किए जाते हैं।

मंदिर के निकट “प्राच्य विद्यापीठ” की स्थापना की गई है, जहां प्राचीन वेद-वेदांग और गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर अध्ययन कराया जाता है। मंदिर के आसपास रहने वाले 350 ब्राह्मण परिवार इस परंपरा को बनाए रखने में योगदान देते हैं। विद्यार्थी “मधुकरी” लाकर देवी की त्रि-पूजा का आयोजन करते हैं, जिसमें नैवेद्य, आरती, देवी पाठ और नंदादीप शामिल होते हैं।


त्योहार, मेले और धार्मिक आयोजन

जनस्थान शक्ति पीठ में कई प्रमुख धार्मिक पर्व मनाए जाते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।

  1. चैत्र नवरात्रि – यह पर्व चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी) से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा तक चलता है।

  2. कुंभ मेला – नासिक में गोदावरी नदी के तट पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेला आयोजित होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आकर्षण होता है।


जनस्थान शक्ति पीठ तक कैसे पहुंचे?

यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है और यहां विभिन्न मार्गों से पहुंचा जा सकता है—

  • हवाई मार्ग – नासिक का ओजर हवाई अड्डा देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। वहां से मंदिर तक सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध है।

  • रेल मार्ग – यह शक्ति पीठ मध्य रेलवे के मुंबई-दिल्ली मुख्य मार्ग पर स्थित है। नासिक रोड रेलवे स्टेशन से मंदिर लगभग 8 किमी की दूरी पर है।

  • सड़क मार्ग – सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। त्र्यंबकेश्वर बस स्टेशन से यह मंदिर लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है।


यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय

जनस्थान शक्ति पीठ की यात्रा का सबसे उत्तम समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। इस समय नासिक का मौसम सुहावना रहता है, जिससे यात्रा सुखद बन जाती है।

नासिक शहर अपनी धार्मिकता के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है, जहां दर्शनीय स्थलों का आनंद लिया जा सकता है।

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Bodh Saurabh

Bodh Saurabh, a journalist from Jaipur, began his career in print media, working with Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika, and Khaas Khabar.com. With a deep understanding of culture and politics, he focuses on stories related to religion, education, art, and entertainment, aiming to inspire positive change through impactful reporting.

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