Govind Dev Ji: चातुर्मास के चार महीने बाद, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का जागरण एक अद्भुत और दिव्य अनुभव बना! घंटों, घड़ियालों, शंखों और वेद मंत्रों के साथ भगवान विष्णु को जगाया गया, (Govind Dev Ji) और साथ ही शुरू हुआ मांगलिक आयोजनों का सिलसिला। गोविंद देवजी मंदिर सहित कई कृष्ण मंदिरों में तुलसी और सालिग्राम के विवाह ने इस दिन को और भी खास बना दिया। जयपुर में इस धार्मिक उत्सव ने आस्था और उल्लास का जबरदस्त संगम पैदा किया, जहां हर गली और मंदिर में भक्ति का आलम था!
गोविंद देवजी मंदिर में देवउठनी एकादशी महोत्सव
जयपुर के आराध्य गोविंद देवजी मंदिर में इस साल भी देवउठनी एकादशी महोत्सव धूमधाम से मनाया गया, जैसा कि हर साल होता है। इस विशेष दिन की शुरुआत मंदिर सेवाधिकारी मानस गोस्वामी द्वारा मंगला झांकी से पहले ठाकुर श्रीजी का वैदिक मंत्रोचारण के साथ पंचामृत अभिषेक और विशेष शृंगार से की गई।
चांदी के रथ पर ठाकुरजी की आराधना
महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने ठाकुर सालिग्राम को चांदी की चौकी पर विराजमान किया और उन्हें तुलसी मंच पर स्थापित किया। इसके बाद सालिग्राम का पंचामृत अभिषेक हुआ, जिसके बाद तुलसी महारानी और सालिग्राम की आरती पूजन कर भोग अर्पित किया गया। फिर तुलसी महारानी और सालिग्राम की चार परिक्रमा की गई, और ठाकुर सालिग्राम को चांदी के रथ पर विराजमान कर मंदिर की एक परिक्रमा कर गर्भगृह में वापस स्थापित किया गया। अंत में धूप आरती का आयोजन हुआ।
ठाकुर श्रीजी का विशेष शृंगार
महोत्सव के दौरान ठाकुर श्रीजी को लाल रंग की सुनहरे पार्चे की लप्पा जामा पोशाक पहनाई गई और विशेष फूलों से शृंगार किया गया। साथ ही उन्हें सागारी लड्डू, फल और माखन मिश्री का भोग अर्पित किया गया।
तुलसी विवाह की धार्मिक महत्ता
कार्तिक शुक्ल एकादशी युक्त द्वादशी तिथि के प्रदोष काल में तुलसी विवाह को अत्यंत शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, यह समय तुलसी और सालिग्राम के विवाह के लिए सर्वोत्तम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जलंधर को हराने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग किया था, जिसके बाद तुलसी का पौधा प्रकट हुआ। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि तुलसी का विवाह उनके सालिग्राम स्वरूप से होगा और उनकी पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाएगी, इसलिए विष्णु पूजा में तुलसी के पत्ते हमेशा शामिल किए जाते हैं।
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