
Bhishma’s Secret: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब सूर्य बृहस्पति की राशि धनु और मीन में भ्रमण करते हैं, तो सूर्य का तेज मद्धम पड़ जाता है। इस समय आत्मा, ऊर्जा और शक्ति के कारक सूर्य की स्थिति कमजोर होती है, (Bhishma’s Secret)जिससे उनके शुभ प्रभावों में कमी आती है। यही कारण है कि खरमास के दौरान किसी भी प्रकार की नई शुरुआत, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या व्यापार की शुरुआत को टाला जाता है। क्योंकि माना जाता है कि इस अवधि में किए गए कार्यों में स्थायित्व की कमी और सफलता की संभावना कम हो जाती है।
खरमास का रहस्य: सूर्य की स्थिति और इसकी विशेष मान्यता
ज्योतिष शास्त्र में खरमास को एक विशेष समय माना जाता है, जब सूर्य पौष माह में धनु राशि में भ्रमण करते हैं। इस दौरान सूर्य का तेज मद्धम हो जाता है और उनकी रोशनी उत्तरी गोलार्ध में कम पड़ती है। इसके पीछे यह मान्यता है कि सूर्य नारायण इस समय घोड़े की जगह गर्दभ (गधे) की सवारी करते हैं, जिससे सूर्य के प्रभाव में कमी आती है। यही कारण है कि इस अवधि को खरमास या मलमास कहा जाता है और इस दौरान नई शुरुआत से बचने की सलाह दी जाती है।
भीष्म पितामह ने खरमास में क्यों नहीं छोड़े प्राण? जानें कारण
ब्रह्म पुराण के अनुसार, खरमास में मृत्यु को प्राप्त होने वाला व्यक्ति नर्क का भागी होता है, चाहे उसकी आयु छोटी हो या लंबी। इसी मान्यता के तहत महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने खरमास के दौरान प्राण त्यागने से मना कर दिया था। अर्जुन ने उन्हें बाणों से घायल किया, लेकिन भीष्म के पास इच्छामृत्यु का वरदान था और वे मलमास के समय में प्राण त्यागना नहीं चाहते थे।
भीष्म ने अर्जुन से कहा कि वे उनके लिए बाणों की शैया और सिर के लिए बाण का तकिया तैयार करें। सैकड़ों बाणों से घायल होने के बावजूद भीष्म ने अपनी मृत्यु नहीं स्वीकार की और मकर संक्रांति तक सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। इसके बाद ही माघ शुक्ल पक्ष में उन्होंने अपने प्राण त्यागे।
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