
Bodh Saurabh News, (बौध सौरभ न्यूज) Pahalgam Terror Attack: “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”….इस दावे को चुनौती देते हुए, आरएसएस से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के प्रमुख डॉ. इंद्रेश कुमार ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है। डॉ. कुमार ने कहा कि इस हमले ने पूरे देश को जागरूक किया और इस त्रासदी में शहीद हुए 26 पर्यटकों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा। पूरी दुनिया इस दर्दनाक घटना से शोकित है, और अब समय आ गया है कि हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों।
यह घटना न केवल जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र को हिलाकर रख गई ,(Pahalgam Terror Attack) बल्कि इसने पूरे देश को आतंकवाद के खिलाफ एक सशक्त संदेश भी दिया। डॉ. इंद्रेश कुमार का यह बयान आतंकवाद के धर्म के मुद्दे पर एक तगड़ा सवाल उठाता है, जो अब राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का केंद्र बन चुका है।
आतंकवादियों का धर्म होता है, जनाजे में नमाज पढ़ना क्यों?
आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. इंद्रेश कुमार ने हाल ही में आतंकवादियों के धर्म पर उठाए गए सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा, “अगर आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, तो उनके लिए जनाजे की नमाज क्यों पढ़ी जाती है? लोग आतंकवादियों के जनाजे में क्यों शामिल होते हैं? इसका मतलब है कि आतंकवादियों का कोई धर्म होता है।” उन्होंने मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें आतंकवादियों के जनाजे में शामिल होना और उनके लिए नमाज पढ़ना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह कदम 30-40 साल पहले उठाया गया होता, तो जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद नहीं फैलता।
आतंकवादी हमले के पीड़ितों के लिए स्मारक बनाने की मांग
डॉ. इंद्रेश कुमार ने पहलगाम आतंकवादी हमले के शहीदों के लिए स्मारक बनाने की मांग की। उनका कहना था कि यह स्मारक लोगों को पाकिस्तानी आतंकवादियों की क्रूरता की याद दिलाएगा और देशभक्ति की भावना को जागृत करेगा। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि आतंकवादियों के धर्म को पूरी तरह से खत्म किया जाए, क्योंकि सिर्फ बयानबाजी से काम नहीं चलेगा। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, इसे साबित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल न हों
जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर आए इंद्रेश कुमार ने गांधी नगर में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रमुख नेताओं से भी अपील की। उन्होंने कहा, “आइए हम संकल्प लें कि हम आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होंगे और न ही उनके शवों को हमारे कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा।” इसके साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नेताओं को चुनौती देते हुए कहा, “मैं अक्सर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से पूछता हूं कि आप कब तक कश्मीरी लोगों को धोखा देते रहेंगे और उनकी भावनाओं से खेलते रहेंगे?”
यह बयान अब जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिपेक्ष्य में एक नई बहस का आगाज कर सकता है, और समाज में आतंकवाद के खिलाफ मजबूत संदेश भेजने का प्रयास भी है।