
Pahalgam Attack: पाकिस्तान की दरिंदगी और आतंकवादियों की नापाक साज़िशों ने एक बार फिर से कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र को रक्त से सिक्त कर दिया है। 26 निर्दोष लोगों की हत्या, जिनमें एक स्थानीय मुस्लिम भी शामिल है, ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस भयानक आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने का ऐलान किया है। इनमें सबसे अहम कदम है सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को तत्काल प्रभाव से रद्द करना, (Pahalgam Attack)जिसे पाकिस्तान के अत्याचारों और नापाक हरकतों के जवाब में भारत ने अपनी रणनीति का हिस्सा बनाया है। आइए, जानते हैं कि पाकिस्तान की इस कायरतापूर्ण हरकत के बाद भारत ने कौन-कौन से निर्णायक कदम उठाए हैं और इसका कश्मीर समेत पूरे क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा।
भारत ने रोका सिंधु जल समझौता, पाकिस्तान ने शिमला समझौता..
भारत ने पाकिस्तान को एक और करारा झटका देते हुए सिंधु जल समझौते को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। इस कदम के बाद पाकिस्तान में खलबली मच गई है। पाकिस्तानी मीडिया और राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का विषय बन चुका है, और कई नेताओं ने शिमला समझौता तोड़ने की धमकी दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या शिमला समझौता तोड़ने से पाकिस्तान को कोई फायदा होगा? क्या यह कदम दोनों देशों के बीच रिश्तों को और खराब कर देगा? आइए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
कब हुआ था शिमला समझौता?
शिमला समझौता, भारत और पाकिस्तान के बीच 2 जुलाई 1972 को हुआ था। इसके तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की प्रतिबद्धता जताई थी।
इस समझौते पर भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता सिंधु जल संधि के 12वें साल हुआ था और दोनों देशों के बीच एक नए दौर की कूटनीति का प्रतीक बना था।
शिमला समझौता में क्या-क्या है?
शिमला समझौते के मुख्य बिंदु यह थे कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे और मतभेदों को द्विपक्षीय बातचीत से हल करेंगे। इसके अलावा, दोनों देश किसी भी विवाद को शांति से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध थे। शिमला समझौते में यह भी निर्धारित किया गया था कि कोई भी पक्ष स्थिति को एकतरफा नहीं बदलेगा और आपसी सहमति से ही समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
1971 युद्ध के बाद हुआ शिमला समझौता
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के लिए एक निर्णायक मोड़ था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश की स्थापना की। युद्ध के बाद, शिमला समझौता हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने 93 हजार सैनिकों की वापसी का दावा किया। यह समझौता दोनों देशों के बीच शांति कायम करने और भविष्य में संघर्षों से बचने के लिए महत्वपूर्ण था।
क्या शिमला समझौता तोड़ने से पाकिस्तान को मिलेगा फायदा?
हालांकि पाकिस्तान की तरफ से शिमला समझौता तोड़ने की धमकी दी जा रही है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान ने कभी भी इस समझौते का पूरी तरह से पालन नहीं किया। कारगिल युद्ध (1999), 26/11 मुंबई हमले, और पुलवामा हमला जैसे घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन करते हुए आतंकवादियों को समर्थन दिया। इसलिए, शिमला समझौते को तोड़ने का पाकिस्तान के पास कोई ठोस कारण नहीं है, क्योंकि इसका किसी भी पक्ष को फायदा नहीं होगा।
पाकिस्तान की धमकी का मकसद और असर
पाकिस्तान की यह धमकी केवल एक राजनीतिक बयानबाजी हो सकती है, ताकि भारत को डराया जा सके। हालांकि, यह बात साफ है कि पाकिस्तान ने पहले ही शिमला समझौते को नहीं माना है, और अगर अब औपचारिक रूप से इसे तोड़ने का ऐलान भी करता है तो इससे सिर्फ पाकिस्तान को ही नुकसान होगा। भारत ने पहले से ही पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने और संघर्षों को शांति से सुलझाने का फैसला लिया है। ऐसे में, पाकिस्तान की धमकियों का कोई विशेष असर नहीं पड़ने वाला।
शिमला समझौता तोड़ने से किसे होगा नुकसान?
यदि पाकिस्तान शिमला समझौता तोड़ता है, तो भारत पहले ही आतंकवाद और कूटनीतिक मोर्चे पर इससे प्रभावित हो चुका है। लेकिन पाकिस्तान को भी इसका खामियाजा भुगतना होगा, क्योंकि भारत की सशक्त विदेश नीति और सामरिक ताकत पाकिस्तान के लिए खतरा बन सकती है। शिमला समझौता तोड़ने से पाकिस्तान के लिए कोई सकारात्मक परिणाम नहीं होगा, बल्कि यह उसकी स्थिति को और भी कमजोर कर सकता है।
पाकिस्तान की शिमला समझौता तोड़ने की धमकी, असल में एक राजनीतिक रणनीति हो सकती है, लेकिन इसका कोई ठोस प्रभाव नहीं होने वाला। भारत पहले ही पाकिस्तान की नापाक हरकतों को देखते हुए कड़े कदम उठा चुका है, और शिमला समझौते का पालन न करने से पाकिस्तान का ही नुकसान होगा।
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