SC की लताड़! पीड़िता पर सवाल क्यों? हाईकोर्ट को दी चेतावनी…सोच बदलो, नहीं तो…

Supreme Court on rape case: क्या एक शिक्षित महिला की शिक्षा ही उसकी पीड़ा का प्रमाण बन सकती है? क्या न्याय की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति यह तय कर सकता है कि किसी महिला ने खुद “मुसीबत को आमंत्रित किया”? ऐसे ही सवालों की गूंज तब सुनाई दी जब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जमानत आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने एक याचिका आई,(Supreme Court on rape case) जिसमें हाई कोर्ट द्वारा बलात्कार के आरोपी को जमानत दिए जाने और उस दौरान की गई टिप्पणी को चुनौती दी गई थी। यह याचिका ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ नामक सिविल सोसाइटी नेटवर्क और पीड़िता की मां द्वारा दाखिल की गई थी।

“शिक्षित है, इसलिए समझदार थी?”

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने पिछले महीने आरोपी को जमानत देते हुए यह कहते हुए टिप्पणी की थी कि पीड़िता एमए की छात्रा है और इसलिए “वह अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी।” यही नहीं, कोर्ट ने कहा कि उसने शराब पीकर आरोपी के घर जाने का फैसला किया — जिससे यह प्रतीत होता है कि उसने “स्वयं मुसीबत को आमंत्रित किया”।

इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
“यह क्या चर्चा है कि उसने खुद मुसीबत को न्योता दिया? ऐसी बातें कहते समय बेहद सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर इस तरफ (न्यायाधीशों) को।”
न्यायमूर्ति बीआर गवई

सुप्रीम कोर्ट ने जताई ‘बेहद असंवेदनशील’ बताने वाली नाराज़गी

न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह की टिप्पणियाँ न केवल संवेदनशील मामलों में पीड़िता की गरिमा को आघात पहुंचाती हैं, बल्कि न्याय प्रक्रिया की मूल भावना पर भी सवाल खड़े करती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने जिस आधार पर जमानत दी, वह एक अलग मुद्दा हो सकता है, लेकिन इस तरह की भाषा का प्रयोग स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने मामले को चार सप्ताह बाद पुनः सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।

पिछले सप्ताह भी आया था ऐसा ही मामला

गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य हाई कोर्ट के जमानत आदेश पर भी रोक लगाई थी, जिसमें बलात्कार के प्रयास के आरोपी को राहत दी गई थी। अदालत ने उस आदेश को भी “असंवेदनशील” करार दिया था। यह लगातार दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ा है।


न्यायपालिका की भाषा और संवेदनशीलता पर उठे सवाल

यह मामला केवल एक टिप्पणी का नहीं है — यह हमारी न्याय व्यवस्था में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण, भाषा की मर्यादा और संवेदनशीलता के स्तर का भी आईना है। जब देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को यह कहना पड़े कि “इस तरफ वालों को (न्यायाधीशों) को खास सावधानी बरतनी चाहिए”, तो यह एक चेतावनी भी है और आत्ममंथन का क्षण भी।

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Bodh Saurabh

Bodh Saurabh, a journalist from Jaipur, began his career in print media, working with Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika, and Khaas Khabar.com. With a deep understanding of culture and politics, he focuses on stories related to religion, education, art, and entertainment, aiming to inspire positive change through impactful reporting.

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