Mahakumbh 2025: भारत की पवित्र धरा पर अध्यात्म और संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करने वाला कुंभ मेला हर बार नए रंग और कहानियों से भरपूर होता है। इस बार का कुंभ मेला भी अपवाद नहीं है। जहां देशभर के संत-महात्मा अपनी तपस्या और साधना के साथ श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करने के लिए एकत्रित हुए हैं, वहीं एक ऐसा असाधारण दृश्य भी देखने को मिल रहा है जिसने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है।
जूना अखाड़े के शिविर में एक बाल संत की उपस्थिति ने मेले में खास आकर्षण पैदा कर दिया है। महज तीन साल की उम्र पार करने वाले इस बाल संत का नाम श्रवण पुरी रखा गया है। उनकी मासूमियत, अध्यात्म में गहरी रुचि और संत (Mahakumbh 2025)जैसी दिनचर्या ने हर किसी को हैरान कर दिया है। जहां साधु-संन्यासियों के बीच उनकी सरलता और तेजस्विता का मेल दिखाई देता है, वहीं श्रद्धालु उनकी एक झलक पाने के लिए आतुर हैं।
इस बाल संत का आगमन न केवल कुंभ मेले की पवित्रता को और बढ़ा रहा है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी बन रहा है कि भक्ति और साधना का कोई उम्र बंधन नहीं होता। मेले की शुरुआत से पहले ही श्रवण पुरी की ख्याति चारों ओर फैलने लगी है, और लोग बड़ी संख्या में उनके दर्शन करने के लिए उमड़ रहे हैं।
बाल संत की अनोखी यात्रा की शुरुआत
2021 में हरियाणा के धारसूल इलाके में रहने वाले एक दंपति ने मन्नत पूरी होने पर अपनी पहली संतान को भगवान को समर्पित करने का प्रण लिया। तीन माह के दुधमुंहे बच्चे को लेकर वे डेरा बाबा श्यामपुरी जी महाराज के आश्रम पहुंचे और अपने वचन के अनुसार उसे संतों की सेवा में सौंप दिया। यही बच्चा आज श्रवण पुरी के नाम से प्रसिद्ध बाल संत बन चुका है। उनके गुरु अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज बताते हैं कि आश्रम के संतों ने इस बालक का पालन-पोषण किया और उसी समय से उसमें साधुओं जैसे गुण दिखने लगे।
कुंभ मेले में बाल संत का प्रभाव
महाकुंभ की पावन भूमि पर हजारों साधु-संन्यासियों के बीच जूना अखाड़े के इस नन्हें संत ने एक अलग ही पहचान बना ली है। महज साढ़े तीन साल की उम्र में श्रवण पुरी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। लोग कहते हैं कि बच्चों में भगवान का वास होता है, और जब एक बालक संत के रूप में सामने आता है, तो वह स्वयं दिव्यता का प्रतीक बन जाता है। बाल संत के दर्शन के लिए श्रद्धालु जूना अखाड़े में उमड़ रहे हैं।
बालक संत का पालन-पोषण… गुरुभाइयों का योगदान
तीन महीने की उम्र से ही श्रवण पुरी की देखभाल की जिम्मेदारी उनके गुरुभाई महंत कुंदन पुरी को सौंपी गई। बालक को गुरुभाई मानकर महंत कुंदन पुरी ने उसकी परवरिश को अपना धर्म समझा। आश्रम में रहते हुए श्रवण पुरी का नामकरण अष्टकौशल महंत ने किया, और उनकी दिनचर्या को संतों के अनुरूप ढालना शुरू किया।
शिक्षा और साधना का अनूठा मेल
श्रवण पुरी की शिक्षा-दीक्षा की भी अद्भुत व्यवस्था है। निजी स्कूल में दाखिला दिलाकर उनकी औपचारिक शिक्षा शुरू कराई गई है। साथ ही, आश्रम में उन्हें धार्मिक शिक्षाएं दी जा रही हैं। पूजा-पाठ और जप-तप की प्रक्रिया में भागीदारी ने उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर कर दिया है। छोटे-छोटे धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हुए उनके व्यक्तित्व में एक अद्भुत गंभीरता झलकती है।
विलक्षण आदतें …भक्ति की झलक
जहां आम बच्चे चॉकलेट और टॉफी के लिए जिद करते हैं, श्रवण पुरी केवल फल खाना पसंद करते हैं। मंदिर में शांति से बैठकर पूजा करना और धार्मिक वातावरण में रहना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। हालांकि, बाल सुलभ प्रवृत्ति के तहत उन्हें खिलौने से खेलना भी प्रिय है। अपने गुरुओं और गुरुभाइयों के साथ समय बिताना उन्हें अत्यधिक पसंद है।
चमत्कारी लक्षण …भविष्य की झलक
महंत संत पुरी महाराज के अनुसार, इस बालक में साधारण बच्चों से अलग विशेषताएं हैं। धार्मिक पुस्तकों को पलटना, पूजा में मन लगाना और अनुशासनपूर्वक रहना उनकी विलक्षण प्रतिभा को दर्शाता है। संतों का मानना है कि श्रवण पुरी अपने पिछले जन्मों में भी कोई सिद्ध संत रहे होंगे। उनकी मासूमियत और दिव्यता ने महाकुंभ के श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
श्रवण पुरी न केवल एक बाल संत हैं, बल्कि वे आस्था, भक्ति और आध्यात्मिकता का एक जीवंत उदाहरण बन गए हैं। उनकी उपस्थिति से महाकुंभ मेले का गौरव और बढ़ गया है।
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