
JhunjhunuElection2024: झुंझुनूं उपचुनाव की राजनीति एक बार फिर गरमाने लगी है। कांग्रेस के उम्मीदवार अमित ओला और भाजपा के (JhunjhunuElection2024)राजेन्द्र भाबूं के बीच मुकाबला तो दिलचस्प है ही, लेकिन पूर्व मंत्री राजेन्द्रसिंह गुढ़ा का निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी दंगल में कूदना इस जंग को और भी रोमांचक बना देता है। गुढ़ा, जो वर्तमान में शिवसेना (शिंदे) पार्टी में प्रदेश समन्वयक के रूप में कार्यरत हैं, ने अपनी इस नई भूमिका से सियासी हलकों में हलचल मचा दी है।
कांग्रेस ने गुढ़ा पर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह भाजपा की “बी टीम” के सदस्य हैं, जिससे चुनावी रणनीतियों में एक नया मोड़ आ गया है। अब देखना यह है कि क्या गुढ़ा का यह कदम भाजपा और कांग्रेस के बीच की पारंपरिक खाई को और बढ़ाएगा, या फिर वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में एक नया समीकरण बना पाएंगे? झुंझुनूं की सियासी पिच पर यह त्रिकोणीय संघर्ष अब और भी दिलचस्प होने वाला है!
सियासी जंग में अमित ओला बनाम राजेन्द्र भाबूं, राजेन्द्रसिंह गुढा की रोचक एंट्री!
झुंझुनूं की धरती पर सियासी पारा चढ़ने लगा है! चुनावी महासंग्राम में अब मैदान में हैं कांग्रेस के तीसरी पीढ़ी के प्रत्याशी अमित ओला, जो अपने पिता और पूर्व मंत्री बृजेन्द्रसिंह ओला की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिए हैं। उनके पास है एक मजबूत इतिहास, लेकिन क्या वह इस बार की चुनौतियों का सामना कर पाएंगे?
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई: क्या राजेन्द्र भाबूं को मिलेगा जनता का साथ?
वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए राजेन्द्र भाबूं पर भरोसा जताया है। क्या वह अपनी पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे? उपचुनाव में इस बार राजेन्द्रसिंह गुढा के निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है। गुढा की राजनीति में विद्यमान चतुराई ने सभी दलों को चिंतित कर दिया है।
चुनावी बयार: नुक्कड़ सभाएं, जनसंपर्क और चुनावी जोश!
अब सभी प्रत्याशी चुनावी प्रचार में जुट गए हैं—गांव-गांव जाकर मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं। सियासी गलियारों में चहल-पहल है, हर कोई अपने पक्ष में हवा बनाने की कोशिश कर रहा है। क्या ओला परिवार की परंपरा कायम रहेगी? क्या भाजपा फिर से कमल खिलाने में सफल होगी? या फिर गुढा की चतुराई और निर्दलीय चेहरे की वजह से झुंझुनूं में राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे?
13 नवंबर का मतदान केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि भविष्य का फैसला है! मतदाता अब यह तय करेंगे कि वे किसे सत्ता की बागडोर सौंपते हैं। यह मुकाबला है—प्रतिष्ठा, विरासत और नए चहरे की जंग!