RoadSafetyDisaster: भारत में सड़क दुर्घटनाएं एक गंभीर समस्या बन चुकी हैं, जिससे हर साल हजारों लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। (RoadSafetyDisaster) सड़क सुरक्षा के प्रति गंभीरता दिखाने और दुर्घटनाओं को कम करने के लिए न्यायालयों ने समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। परंतु, सरकारी विभागों की लापरवाही और दिशा-निर्देशों की अनदेखी के कारण स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हो पाया है। ऐसे में न्यायालय को कड़ा रुख अपनाने पर मजबूर होना पड़ा है।
मुख्य खबर:
करीब 9 साल पहले हाई कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए थे। लेकिन, इन दिशा-निर्देशों की पूरी तरह से पालना नहीं होने और सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से वकील और किसी अन्य प्रतिनिधि के उपस्थित नहीं होने से हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।
जस्टिस अशोक कुमार जैन की अदालत ने सरकार के इस रवैए से नाराज होते हुए सरकार पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। अदालत ने इस जुर्माने की राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करवाने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही, अदालत ने मुख्य सचिव सुधांश पंत को 27 नवम्बर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होने का आदेश भी दिया है ताकि इस मामले में स्पष्टीकरण दिया जा सके।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से सड़क सुरक्षा और सरकारी विभागों की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना होगा कि अदालत के इस सख्त कदम के बाद सरकार दिशा-निर्देशों की पालना में कितनी तत्परता दिखाती है।
सरकार गंभीर मुद्दों का समाधान खोजने में विफल
हाई कोर्ट ने सरकार की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सरकार सड़क दुर्घटनाओं जैसे गंभीर मुद्दों का समाधान खोजने में पूरी तरह विफल रही है। इस मामले में हाई कोर्ट ने सरकार पर 1 लाख रुपए का हर्जाना लगाते हुए कहा कि सरकार की लापरवाही को देखते हुए हर्जाना लगाना उचित है। जस्टिस अशोक कुमार जैन ने 21 साल से लंबित अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
विस्तृत दिशा निर्देश और उनकी अनदेखी
कोर्ट ने बताया कि 7 मई 2015 को जयपुर में फ्लाईओवर एवं सड़कों को चौड़ा करने, मुख्य चौराहों एवं तिराहों के विकास, चारदीवारी क्षेत्र में पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में सुधार और पार्किंग पर पाबंदी, सड़कों से अतिक्रमण हटाने और प्रदूषण रोकने के प्रभावी कदम उठाने जैसे 25 बिन्दुओं पर विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए गए थे। इन निर्देशों के बावजूद, सरकार द्वारा इन पर अमल नहीं किया गया।
सरकारी पक्ष की अनुपस्थिति
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि इस मामले में मई 2015 से लेकर सितम्बर 2022 तक महाधिवक्ता नियमित रूप से पैरवी के लिए उपस्थित होते रहे। लेकिन फरवरी 2024 में कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ और मार्च में महाधिवक्ता फिर से उपस्थित हुए। इसके बाद दो तारीखों पर अतिरिक्त महाधिवक्ता भरत व्यास उपस्थित रहे, लेकिन अब फिर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि 9 साल पुराने निर्देशों की अनदेखी गंभीर है और इस पर राज्य सरकार की लापरवाही का जवाब देने के लिए मुख्य सचिव को बुलाना आवश्यक है।
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