‘क्या दादी दौड़ पाएगी?’….93 साल की पानी देवी ने मैदान में उतरते ही सबका मुंह बंद कर दिया!

Bikaner News:9 मार्च 2025, बेंगलुरु का कांतीरवा स्टेडियम। 45वीं राष्ट्रीय मास्टर्स एथलेटिक प्रतियोगिता के ट्रैक पर धावक तैयार थीं। अधिकतर ने टी-शर्ट और लोअर पहना था, लेकिन एक महिला ने सबका ध्यान खींच लिया—लाल ओढ़नी, पारंपरिक घाघरा और पैरों में चोट पर बंधी पट्टी।

लोग फुसफुसा रहे थे—”घाघरा में कैसे दौड़ेंगी?” (Bikaner News)लेकिन जब रेस शुरू हुई, तो ये सवाल पीछे छूट गए और महज 45 सेकंड में राजस्थान की 93 वर्षीय पानी देवी गोल्ड जीतकर इतिहास रच चुकी थीं।

लेकिन पानी देवी की असली दौड़ ट्रैक पर नहीं, जिंदगी के संघर्षों के बीच हुई है। एक ऐसी दौड़, जो गरीबी, समाज की बेड़ियों और हालातों के खिलाफ थी।


पोते को कोचिंग देते देखा, तो खुद को रोक नहीं पाईं!

बीकानेर के चौधरी कॉलोनी में पानी देवी से मिलने पहुंची, तो घर जश्न से भरा था। पोते-पोतियां और पड़पोते गोल्ड मेडल को छूकर देख रहे थे। तभी दादी ने मुस्कुराते हुए राम-राम किया और कहानी शुरू हुई।

उन्होंने बताया, “मेरा पोता जयकिशन खुद एथलीट है। एक दिन मैंने उसे पैरा एथलीट्स को शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और क्लब थ्रो सिखाते देखा। मैंने कहा—’ये तो मैं भी कर सकती हूं!’

इसके बाद जयकिशन ने उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। स्टेट टूर्नामेंट आया, तो दादी ने हिदायत दी—“किसी को मत बताना!”

नवंबर 2023 में अलवर में स्टेट चैंपियन बनीं। फिर फरवरी 2024 में पुणे में भी नेशनल गोल्ड जीत लिया। पोते ने वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया, तो पूरा गांव जान गया! गांव वालों ने पैर छूकर सम्मान किया, तो दादी नाराज हो गईं—“सबको क्यों बताया?”


घुटने में चोट, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

बेंगलुरु जाने से कुछ दिन पहले, गड्ढे में पैर फंसने से पानी देवी के टखने और घुटने में चोट लग गई। फिजियोथेरेपी भी की, लेकिन दर्द कम नहीं हुआ।

जयकिशन को चिंता थी कि इस हालत में खेलना ठीक रहेगा या नहीं। लेकिन दादी अडिग थीं—”इतनी मेहनत के बाद यहां तक आए हैं, तो खेलकर ही जाएंगे। ज्यादा से ज्यादा हार ही जाएंगे न?”

रेस के दौरान सभी खिलाड़ियों ने स्पोर्ट्स किट पहनी थी, लेकिन पानी देवी ने घाघरा-ओढ़नी में ही दौड़ने की जिद ठान ली। जयकिशन ने फेडरेशन अधिकारियों को समझाया और दादी को खेलने की अनुमति मिल गई।


93 की उम्र, लेकिन फिटनेस ऐसी कि डॉक्टर भी हैरान!

न चश्मा, न हाई बीपी, न शुगर! …सुबह से रात तक एक्टिव!….पानी देवी घर के सारे काम खुद करती हैं। भैंसों को नहलाती हैं, दूध निकालती हैं, मंदिर जाती हैं। शाम को पोते के साथ करनी सिंह स्टेडियम में युवा एथलीट्स के साथ ट्रेनिंग करती हैं। दो साल पहले तक सुनने की भी कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन एक एक्सपायरी दवा ने सुनने की क्षमता कमजोर कर दी।


सुबह-शाम ट्रेनिंग, ग्राउंड में प्रणाम करके उतरती हैं

गांव की सबसे बुजुर्ग महिला होने के बावजूद, पानी देवी की ट्रेनिंग का जुनून किसी युवा से कम नहीं। पोता जयकिशन कहता है, “मैं दादी को कम ट्रेनिंग करने को कहता हूं, लेकिन वे मानती ही नहीं!”

अगर सेहत थोड़ी भी नरम हो, तो घर के आंगन में ही डिस्कस और शॉटपुट की प्रैक्टिस कर लेती हैं। वरना स्टेडियम जाकर बाकायदा ग्राउंड को प्रणाम करके मैदान में उतरती हैं!


बचपन में खेलने की इजाजत नहीं थी

न स्कूल गईं, न खेल सकीं।  15 साल की उम्र में शादी हो गई। 50 की उम्र में पति गुजर गए। पांच बेटों और तीन बेटियों को पालने के लिए खेती में मजदूरी की, पांच कोस पैदल चलकर सूत बेचने जाती थीं। संघर्षों में उन्होंने बीकानेर में ज़मीन खरीदी, जिस पर आज उनके बेटे बसे हुए हैं।


अब इंडोनेशिया के लिए पीएम मोदी से मदद मांगी

2024 में पुणे नेशनल चैंपियनशिप जीतने के बाद पानी देवी को स्वीडन में इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलना था। पासपोर्ट होने के बावजूद वे नहीं जा सकीं, क्योंकि 4-5 लाख रुपये का खर्चा था। अब इंडोनेशिया में इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई किया है। लेकिन इस बार भी वही आर्थिक परेशानी सामने है। पानी देवी ने पीएम नरेंद्र मोदी से अपील की—”मोदीजी! मुझे विदेश भेज दीजिए, मैं वहां भी मेडल जीतकर आऊंगी!” बेंगलुरु से लौटते वक्त अहमदाबाद, सूरत, आणंद और बीकानेर में युवा खेल संघों ने उनका सम्मान किया। आज पानी देवी सिर्फ एक एथलीट नहीं, बल्कि उम्र और हालात से हार न मानने वाली मिसाल बन गई हैं।

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Bodh Saurabh

Bodh Saurabh, a journalist from Jaipur, began his career in print media, working with Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika, and Khaas Khabar.com. With a deep understanding of culture and politics, he focuses on stories related to religion, education, art, and entertainment, aiming to inspire positive change through impactful reporting.

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