
Bhajanlal Sharma government : भारत में प्रशासनिक इकाइयों का गठन और पुनर्गठन एक संवेदनशील विषय रहा है, जो न केवल प्रशासनिक दक्षता बल्कि राजनीतिक नीतियों से भी जुड़ा होता है। राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने हाल ही में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार द्वारा बनाए गए 9 जिलों और 3 संभागों को खत्म करने का निर्णय लिया, जिसे लेकर राज्य में बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। (Bhajanlal Sharma government )विपक्ष इसे जनभावनाओं के खिलाफ बताते हुए सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगा रहा है, जबकि सरकार का तर्क है कि यह निर्णय प्रशासनिक और आर्थिक तर्कों के आधार पर लिया गया है।
इस घटनाक्रम ने यह महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या किसी राज्य सरकार को जिलों के निर्माण और समाप्ति का अधिकार है? यदि हां, तो इसकी संवैधानिक और प्रशासनिक प्रक्रिया क्या होती है? इस लेख में हम इसी मुद्दे का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
राजनीतिक फैसले के आरोपों पर सरकार का बचाव
राज्य सरकार ने इस पूरे मामले में खुद को बचाव की मुद्रा में रखते हुए राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम 1956 के सेक्शन 15 और 16 का हवाला दिया। संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल ने सदन में स्पष्ट किया कि जिले बनाने या खत्म करने का पूर्ण अधिकार राज्य सरकार के पास है और यह फैसला व्यापक प्रशासनिक अध्ययन और विशेषज्ञों की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है। उनका कहना है कि विपक्ष जनता को गुमराह कर रहा है और इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
जनता की अनदेखी का आरोप
कांग्रेस ने सरकार के इस तर्क को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे “जनविरोधी और असंवेदनशील” करार दिया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने प्रशासनिक जरूरतों और जनता की मांग को ध्यान में रखते हुए 17 नए जिले बनाए थे, लेकिन भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही जनता के फैसले को रद्द कर दिया। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार का यह कदम आर्थिक संकट और कुप्रशासन को छिपाने की कोशिश है।
प्रशासनिक दक्षता और वित्तीय भार
सरकार का दावा है कि यह निर्णय प्रशासनिक दक्षता को बनाए रखने और अतिरिक्त वित्तीय बोझ को कम करने के लिए लिया गया है। मंत्री जोगाराम पटेल ने कहा कि पूर्व की सरकार ने जिलों का गठन जल्दबाजी में और बिना ठोस योजना के किया था, जिससे राज्य के खजाने पर अनावश्यक बोझ पड़ा। सरकार ने यह भी तर्क दिया कि छोटे जिलों में पर्याप्त प्रशासनिक संसाधन नहीं थे, जिससे सुशासन बाधित हो रहा था।
9 जिले खत्म करने का असर
सरकार के इस फैसले से दूदू, केकड़ी, शाहपुरा, नीमकाथाना, गंगापुर सिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण, अनूपगढ़ और सांचौर जिले अब दोबारा अपने पुराने स्वरूप में लौट आए हैं। इससे इन जिलों में रहने वाले लाखों नागरिकों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
चुनावी गणित का नया मुद्दा?
राजस्थान में अगले चुनाव से पहले यह मुद्दा भाजपा और कांग्रेस के बीच बड़ा सियासी हथियार बन सकता है। कांग्रेस इस फैसले को जनविरोधी बताते हुए जनता के बीच भाजपा सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा इसे साहसिक प्रशासनिक सुधार के रूप में पेश कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में यह मुद्दा किस करवट बैठता है और क्या यह फैसला भाजपा के लिए लाभकारी साबित होगा या कांग्रेस के लिए संजीवनी?
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