
PM Modi’s emotional article on Atal Bihari Vajpayee’s birthday: पूरी दुनिया में आज क्रिसमस (Christmas) का त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन हर किसी के जीवन में उमंग, खुशी और प्रेम की नई किरण लेकर आता है। लेकिन, इस दिन का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व केवल इस त्योहार तक ही सीमित नहीं है। (PM Modi’s emotional article on Atal Bihari Vajpayee’s birthday:)इतिहास में यह तारीख कई महान विभूतियों के जन्मदिन के तौर पर भी अंकित है। उन्हीं में से एक महान विभूति हैं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee), जिनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था।
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन और उनका कृतित्व हमारे देश के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा है। उनके अद्वितीय नेतृत्व, उत्कृष्ट भाषण शैली और देशभक्ति की भावना ने न केवल भारतीय राजनीति को बल्कि हर भारतीय के दिल को छू लिया। आज, जब हम उनका जन्मदिन मना रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने इस खास मौके पर अटल जी के प्रति अपनी भावनाओं को एक आर्टिकल के माध्यम से व्यक्त किया है। आइए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस लेख को पढ़ें और अटल जी के प्रति उनकी भावनाओं को समझें।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं…
“मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं…लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?” अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं…कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे…उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वह ये भी कहते थे, “जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है…कौन जानता किधर सवेरा।” आज अगर वह हमारे बीच होते, तो वह अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वह दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था…और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वह स्नेह…वह अपनत्व…वह प्रेम…मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।
भारत को नव विकास की गारंटी दी
21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि यह सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।
उनके शासन काल में शुरू हुई मेट्रो
वह ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव आज तक अटल है। वह भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया।
भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किए गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा, वह आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए।
उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।
शिक्षा को सर्वोच्च मानते थे वाजपेयी
जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वह चाहते थे कि भारत के हर वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिलाओं के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।
पीछे हटने की बजाय….
उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते हैं। देश को अब भी 11 मई 1998 का वह गौरव दिवस याद है, जब एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की।
पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था, लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।
हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला किया
वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायराना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।
वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले
उनमें सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।
भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था
हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।
सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती
आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे।
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