जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में 7 से 15 नवंबर तक आयोजित श्रीरामकथा धार्मिक आस्था का एक बड़ा केंद्र बनी रही। लेकिन कथा के बीच रामभद्राचार्य का जाति आधारित आरक्षण समाप्त करने का बयान भारी विवाद का कारण बन गया। अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य आरक्षित वर्गों के संगठनों ने इसे अपने अधिकारों पर हमला मानते हुए तीव्र विरोध दर्ज कराया।
यह घटना न केवल धार्मिक मंच की सीमाओं को लेकर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से को अपने
पद्मविभूषण सम्मान वापस लेने की मांग
डॉ. अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी राजस्थान के अध्यक्ष जसवंत संपतराम और महासचिव जी.एल. वर्मा समेत कई पदाधिकारियों ने रामभद्राचार्य की टिप्पणी को निंदनीय बताते हुए केंद्र सरकार से उनका पद्मविभूषण सम्मान वापस लेने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
जातीय भेदभाव और समाज को बांटने का आरोप
विरोध करने वालों ने कहा कि रामभद्राचार्य का यह कथन कि “सवर्ण वर्ग का बालक शत-प्रतिशत अंक लाकर भी जूता सिलाई करे और अनुसूचित जाति का बच्चा चार प्रतिशत अंक लाकर कलेक्टर बन जाए,” समाज को बांटने वाला है। इसे झूठा और द्वेष फैलाने वाला बताते हुए संतों और पदाधिकारियों ने कड़ा विरोध जताया।
संविधान और आरक्षण के प्रावधान पर जोर
जी.एल. वर्मा और अन्य वक्ताओं ने संविधान में आरक्षण के प्रावधान को ऐतिहासिक अन्यायों को खत्म करने और आरक्षित वर्गों को समान अवसर देने का माध्यम बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी वैध ठहराया जा चुका है।
धार्मिक मंच से राजनीतिक टिप्पणी की निंदा
विरोध जताने वालों ने कहा कि धार्मिक मंच से आरक्षण पर टिप्पणी करना अनुचित है। उन्होंने राजस्थान सरकार से सवाल किया कि संविधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ऐसे कार्यक्रमों में शामिल क्यों हुए। विरोध प्रदर्शन में बी.एल. भाटी, अनिल गोठवाल, एच.आर. परमार, पी.एन. बुटोलिया, साध्वी रतनी बाई, उर्मिला वर्मा, शिव शंकर छत्रपति और लक्ष्मी नारायण वर्मा सहित कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। संतों और संगठनों ने सरकार से रामभद्राचार्य के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की और इस घटना को समाज के लिए गंभीर खतरा बताया।
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