भारत धर्मशाला नहीं!’ सुप्रीम कोर्ट का दो-टूक जवाब, श्रीलंका के नागरिक की याचिका खारिज, जानें कारण

 Supreme Court: भारत, जिसकी संस्कृति ‘अतिथि देवो भवः’ की भावना से ओतप्रोत रही है, हमेशा से ही शरणार्थियों को सहारा देने वाला देश माना जाता रहा है। तिब्बत से लेकर अफगानिस्तान और बांग्लादेश तक के शरणार्थियों को यहां आसरा मिला, लेकिन क्या यह परंपरा अब न्यायिक सीमाओं के भीतर कसौटी पर है?

“भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से आए शरणार्थियों को यूं ही शरण दी जा सके!” — सुप्रीम कोर्ट की यह तीखी टिप्पणी शुक्रवार को उस वक्त सामने आई जब एक श्रीलंकाई नागरिक ने भारत में शरण की गुहार लगाई। मामला सिर्फ एक विदेशी की याचिका का नहीं था, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमाओं की( Supreme Court) संवेदनशीलता और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों के संतुलन का भी था। याचिकाकर्ता पर लिट्टे जैसे कुख्यात आतंकी संगठन से जुड़े होने का संदेह था, जिसने कभी श्रीलंका को दहला दिया था। अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने साफ कहा…भारत सबके लिए दरवाजे नहीं खोल सकता।

 

सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक टिप्पणी: “भारत कोई धर्मशाला नहीं है”

भारत में शरण की गुहार लगाने वाले एक श्रीलंकाई नागरिक को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका मिला। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने भारत में रहने की इजाजत मांगी थी। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा, “क्या भारत पूरी दुनिया के शरणार्थियों की मेजबानी करेगा? यह कोई धर्मशाला नहीं है।”


लिट्टे से जुड़े होने के आरोप में मिली थी सजा

दरअसल, यह मामला साल 2015 का है, जब याचिकाकर्ता को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से कथित संबंधों के चलते गिरफ्तार किया गया था। 2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम [UAPA] के तहत दोषी करार देते हुए 10 साल की सजा सुनाई। बाद में 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी सजा घटाकर 7 साल कर दी, लेकिन आदेश दिया कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा और निर्वासन से पहले शरणार्थी शिविर में रहना होगा।


परिवार भारत में, लेकिन खुद हिरासत में

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि वह वैध वीजा पर भारत आया था और अगर वह श्रीलंका लौटता है तो उसकी जान को खतरा है। उसने बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भारत में ही रह रहे हैं और वह खुद पिछले तीन साल से हिरासत में है, जबकि निर्वासन की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है।


“अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं”

याचिकाकर्ता के वकील ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 19 का हवाला देते हुए कहा कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। लेकिन न्यायमूर्ति दत्ता ने इस तर्क को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को कानून के तहत हिरासत में लिया गया है, इसलिए अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं हुआ है। वहीं अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है, न कि विदेशी नागरिकों पर।


“यहां बसने का क्या अधिकार है?”

जब याचिकाकर्ता के वकील ने शरणार्थी होने की दलील दी और जान को खतरा बताया, तो कोर्ट ने पूछा, “यहां बसने का आपका क्या अधिकार है?” इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि अगर श्रीलंका में जान का खतरा है, तो वह किसी अन्य देश में शरण लेने का प्रयास करे — भारत इसका स्वचालित विकल्प नहीं हो सकता।

Bodh Saurabh Desk

Bodh Saurabh is an experienced Indian journalist and digital media professional, with over 14 years in the news industry. He currently works as the Assistant News Editor at Bodh Saurabh Digital, a platform known for providing breaking news and videos across a range of topics, including national, regional, and sports coverage.

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