
JDA: जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) की प्रवर्तन शाखा इन दिनों सवालों के घेरे में है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक ज़मीन, जिसकी वैधता खुद जेडीए ने अदालत में स्वीकार की थी, उसी पर अब तोड़फोड़ की कार्रवाई की जा रही है। सवाल उठते हैं…..क्या ये कोई सामान्य प्रक्रिया है, या फिर अंदरखाने कोई बड़ा खेल चल रहा है?
क्या है मामला: दो बार अलग-अलग नियम, एक ही ज़मीन
मामला है ग्राम माचड़ा, खसरा नंबर 841 और 843 में स्थित आवासीय योजना गणेश नगर-5 का।
इस जमीन को वर्ष 2004 में ही 90बी के तहत वैध कर दिया गया था।
लेकिन 2017 में भू-माफिया ओमप्रकाश चारण के नाम पर फिर से 90ए करा दी गई, वह भी गलत तथ्यों के आधार पर।
जेडीए ने पहले मानी गलती – अब क्यों बदल रहा है रुख?
जेडीए सचिव और ज़ोन उपायुक्त दोनों ने 2017 की 90ए को स्पष्ट रूप से “गलत” माना और कोर्ट में स्वीकार किया कि यह प्रक्रिया अवैध थी।फिर अब 2025 में उसी 90ए को सही मानते हुए कार्रवाई क्यों की जा रही है?
प्रवर्तन शाखा की संदिग्ध भूमिका: मिलीभगत या लापरवाही?
16 जुलाई 2025 को प्रवर्तन अधिकारी अरुण कुमार पूनिया ने 6 मकान मालिकों और 9 दुकानदारों को नोटिस जारी किए, जिसमें 2017 की 90ए को आधार बताया गया।
सवालों के घेरे में जेडीए:
- क्या प्रवर्तन अधिकारी ने ज़ोन-6 से रिपोर्ट लिए बिना ही कार्रवाई शुरू की?
- क्या भू-माफियाओं से मिलीभगत कर मकान-दुकानों को उजाड़ा जा रहा है?
- क्या यह आम जनता की वैध संपत्ति को हड़पने की साजिश है?
स्थानीय स्थिति: बिजली है, दुकानें चालू, फिर भी “अवैध”?
जिन भवनों को अवैध बताया गया है:
- वे वर्षों से कार्यरत हैं
- बिजली के वैध कनेक्शन हैं
- लोग परिवार सहित रह रहे हैं
- फिर यह अमानवीय कार्रवाई क्यों?
मुख्यमंत्री कार्यालय से जांच शुरू – लेकिन क्या होगा असरदार एक्शन?
भूखंडधारियों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने जांच के निर्देश दिए थे, और जेडीए ने कोर्ट में गलती मानी। फिर भी कार्रवाई जारी है — यह किसी शक्तिशाली गठजोड़ की ओर संकेत करता है।
जेडीए जैसी संस्था जब एक ही ज़मीन को पहले वैध और फिर अवैध मानती है, तो यह न सिर्फ़ भ्रष्टाचार है, बल्कि जनता के अधिकारों पर सीधा हमला है।
अब जरूरत है: स्वतंत्र जांच, पारदर्शिता और जवाबदेही की।
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