
Rajasthan High Court: राजस्थान में नाबालिग बच्चियों के लापता होने के मामलों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। पिछले कुछ वर्षों से कोटपूतली-बहरोड़, जयपुर, और डीग जैसे जिलों में छोटी बच्चियां अचानक से गायब हो रही हैं, जिनका पता अब तक नहीं चल पाया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए 4 जिलों के एसपी को निर्देश दिया है कि वे रोजाना संबंधित थानों में एक-एक घंटा बैठकर मामले की मॉनिटरिंग करें।
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इन (Rajasthan High Court) बच्चियों की सुरक्षा के लिए जो जिम्मेदार पुलिस विभाग है, वह इतने वर्षों में क्या कर रहा था? क्या सच में पुलिस ने खोज में पूरी मेहनत की, या यह एक मात्र औपचारिकता थी?
केस स्टडीज: गुमशुदा बच्चियों की कहानी
1. हरसोरा का 3 साल पुराना गुमशुदगी केस
29 मार्च 2022 को 15 साल की नाबालिग हरसोरा थाना क्षेत्र से गायब हुई। नामजद आरोपी होने के बावजूद आज तक पुलिस न तो बच्ची को खोज पाई और न आरोपी को पकड़ पाई। परिवार की बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
2. रामगंज की 16 वर्षीय बच्ची की रहस्यमय गुमशुदगी
6 फरवरी 2024 से लापता बच्ची के मामले में भी डीजीपी से लेकर डीसीपी नॉर्थ तक कई अधिकारी कोर्ट में पेश हुए। पर नतीजा शून्य। कोर्ट ने अब एसपी को रोज एक घंटा थाने में बैठने का निर्देश दिया है, ताकि मामले को नजरअंदाज न किया जाए।
3. मुरलीपुरा में 14 वर्षीय बच्ची का केस
नामजद आरोपी होने के बावजूद पुलिस न तो आरोपी की तलाश कर पाई और न बच्ची को ढूंढ सकी। यहां भी कोर्ट ने डीसीपी को सख्त आदेश दिए हैं।
4. डीग की सवा साल से लापता बच्ची
नवंबर 2024 से गायब बच्ची की तलाश में अभी तक कोई सफलता नहीं मिली। हाईकोर्ट ने एसपी को थाने में बैठकर मामले की व्यक्तिगत मॉनिटरिंग करने का निर्देश दिया।
जांच में सामने आई कमियां और कथित लापरवाही
- कमजोर जांच: पुलिस द्वारा किए गए प्रयास अक्सर आधे-अधूरे और असंगठित नजर आते हैं।
- टेक्निकल संसाधनों की कमी: आधुनिक तकनीक और फोरेंसिक मदद का सीमित उपयोग।
- प्राथमिकता में कमी: कई बार पुलिस मामले को ‘तयशुदा’ मानकर जल्दी निपटाने की कोशिश करती है।
- अपराधी नेटवर्क का संरक्षण: स्थानीय संदिग्धों और अपराधी गुटों के संरक्षण के आरोप।
- परिवारों की अनदेखी: परिजनों की शिकायतें और साक्ष्य अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।
अदालत ने कड़ी चेतावनी दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस की जवाबदेही को लेकर स्पष्ट किया है कि अगली सुनवाई तक यदि बच्चियों को बरामद नहीं किया गया, तो संबंधित एसपी और डीसीपी को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होकर स्पष्टीकरण देना होगा। यह आदेश सिस्टम में बदलाव और त्वरित कार्रवाई का संकेत है।
समाज और सिस्टम: समस्या की जड़ें
- सामाजिक जागरूकता की कमी: परिवार और समाज में नाबालिग सुरक्षा को लेकर पर्याप्त जागरूकता नहीं।
- पुलिस और समाज का विश्वासघात: जनता का पुलिस पर विश्वास घटता जा रहा है।
- राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक अक्षमता: कई बार मामलों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है, जिससे जांच प्रभावित होती है।
- संसाधनों की कमी: ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में पुलिस को पर्याप्त संसाधन और ट्रेनिंग नहीं मिलती।
नाबालिग सुरक्षा के लिए जरूरी कदम
राजस्थान में नाबालिग बच्चियों की गुमशुदगी का यह मामला सिर्फ एक पुलिस की लापरवाही नहीं, बल्कि एक सामाजिक और प्रशासनिक संकट है। उच्च न्यायालय के आदेश एक कदम जरूर हैं, लेकिन इसके साथ ही चाहिए:
- समर्पित और प्रशिक्षित टीमों का गठन।
- आधुनिक तकनीक और फोरेंसिक जांच को बढ़ावा।
- समाज में जागरूकता अभियान।
- परिवारों को सहायता और संरक्षण।
- निष्पक्ष और शीघ्र जांच के लिए स्वतंत्र निगरानी।
वरना, मासूम बच्चियों की बढ़ती गुमशुदगी और उनके परिवारों के आंसू कोई रोक नहीं पाएगा।
क्या राजस्थान सरकार और पुलिस प्रशासन इस चुनौती को स्वीकार कर शीघ्र और प्रभावी कदम उठाएंगे, या यह मामला भी धूल फांकता रहेगा? समय ही बताएगा।
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