
Supreme Court: नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का अर्थ किसी को अपमानित करने या समाज में वैमनस्य फैलाने की छूट नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत की दो अलग-अलग पीठों ने सोशल मीडिया पर फैल रहे अशोभनीय, भड़काऊ और विभाजनकारी (Supreme Court)कंटेंट पर गहरी चिंता जताई।
सोशल मीडिया पर अनुशासन और जिम्मेदारी जरूरी
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि आज़ादी का मतलब अनुशासनहीनता या समाज में जहर घोलना नहीं हो सकता। उन्होंने टिप्पणी की, “हर किसी को सोच-समझकर बोलने की ज़रूरत है। संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं, लेकिन उसके साथ कर्तव्य भी दिए हैं।”
इसी मुद्दे पर सुनवाई कर रही दूसरी पीठ के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार ने कहा, “कुछ लोग सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल कर सिर्फ चर्चा में बने रहना चाहते हैं। यह अभिव्यक्ति की आज़ादी की भावना के खिलाफ है।”
केंद्र सरकार से गाइडलाइंस बनाने की मांग
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने अदालत को बताया कि सोशल मीडिया पर अश्लील और घृणास्पद कंटेंट रोकने के लिए नई गाइडलाइंस पर विचार चल रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा, “गाइडलाइंस संविधान के मूल सिद्धांतों और स्वतंत्रता की भावना के अनुरूप होनी चाहिए। सभी पक्षों को इस पर विचार-विमर्श करना होगा।”
‘स्वविवेक और संयम बरतें लोग’
सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि नागरिकों को यह समझना होगा कि आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी आती है। कोर्ट ने कहा कि “हर मामले में सरकार का हस्तक्षेप आदर्श स्थिति नहीं हो सकता। समाज में सेल्फ-रेगुलेशन की भावना विकसित करनी होगी।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत सेंसरशिप के पक्ष में नहीं है, लेकिन सामाजिक सौहार्द की रक्षा के लिए जरूरी कदमों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।
तीन याचिकाओं पर सुनवाई
पिछले दो दिनों में कोर्ट ने हास्य कलाकारों, एक कार्टूनिस्ट और एक आम नागरिक की याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की कि सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “कोई भी मंच स्वतंत्रता की आड़ में घृणा या अश्लीलता का अड्डा नहीं बन सकता।”
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