
अदालतें क्यों हैं लोकतंत्र की संजीवनी
गडकरी ने इस मौके पर उदाहरण देते हुए कहा, “कई बार अदालतें ऐसे फैसले करवा देती हैं जो सरकार चाहकर भी नहीं कर पाती। अदालतों की सक्रिय भूमिका से कई महत्वपूर्ण जनहित के मसले हल हुए हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि राजनीति में लोकलुभावन फैसलों की होड़ ने जनहित के कई जरूरी फैसलों को पीछे धकेला है। ऐसे में न्यायपालिका की हस्तक्षेपात्मक भूमिका एक संतुलनकारी ताकत बनकर सामने आती है।
जनहित में सवाल पूछने की जिम्मेदारी
मंत्री ने कहा कि सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं, बल्कि सोच-समझकर याचिकाएं दाखिल करने वाले लोग लोकतंत्र की रीढ़ हैं। उन्होंने उन नागरिकों और कार्यकर्ताओं की सराहना की, जिन्होंने निडर होकर अदालतों का सहारा लिया और व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया को मजबूती दी।
“सही समय पर सरकार पर सवाल उठाना और जवाबदेही सुनिश्चित करना ही लोकतंत्र की ताकत है,” गडकरी ने जोर देते हुए कहा। गडकरी का यह वक्तव्य उन सभी नागरिकों के लिए संदेश है जो व्यवस्था को मजबूत और जिम्मेदार बनाना चाहते हैं। लोकतंत्र में जागरूकता और संवेदनशीलता ही विकास की असली कुंजी है।
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