Chetna death rescue operation 5 crore: भारत में हर साल बोरवेल में गिरने की घटनाएं एक दर्दनाक हकीकत बनती जा रही हैं। हाल ही में, चेतना नाम की एक मासूम बच्ची को 1000 रुपये के ढक्कन से बचाई जा सकती थी, लेकिन उसकी जान बचाने के लिए 10 दिनों का रेस्क्यू ऑपरेशन और 5 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। (Chetna death rescue operation 5 crore)सवाल उठता है कि अगर सरकार और समाज पहले ही सतर्क हो जाएं और इन ‘मौत के कुओं’ को बंद करने पर ध्यान दें, तो क्या ऐसे हादसे रोके जा सकते हैं?
यह घटना न केवल हमारी लापरवाही की कहानी है, बल्कि इस बात पर भी रोशनी डालती है कि हम संकट के बाद जागते हैं, जब पहले से ही उपाय करना ज्यादा सस्ता और सुरक्षित हो सकता है। चेतना को बचाने के लिए जुटाई गई शक्ति और संसाधन प्रशंसनीय हैं, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होता कि यह ताकत पहले ही इन बोरवेल को बंद करने में लगाई जाती?
आखिरकार, 1000 रुपये की लापरवाही ने करोड़ों खर्च कर दिए और एक मासूम की जिंदगी खतरे में डाल दी।
कोटपूतली: मासूम चेतना का रेस्क्यू हुआ, लेकिन जिंदगी हार गई
23 दिसंबर को कोटपूतली के कीरतपुरा गांव की ढाणी बड़ियाली में एक दर्दनाक हादसा हुआ, जब 3 साल की बच्ची चेतना 700 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई। 10 दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बुधवार शाम 6:25 बजे उसे बाहर निकाला गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चेतना की जान नहीं बचाई जा सकी।
200 घंटे का रेस्क्यू ऑपरेशन, मगर बच्ची नहीं बच पाई
चेतना को बचाने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने दिन-रात मेहनत की। 700 फीट गहरे बोरवेल में 150 फीट की गहराई पर फंसी चेतना तक पहुंचने के लिए 200 घंटे से अधिक का रेस्क्यू ऑपरेशन चला। इसमें पाइल मशीन, हाइड्रोलिक मशीन, जेसीबी, क्रेन, एंबुलेंस, दमकल, और जनरेटर जैसी कई मशीनों का उपयोग किया गया।
खुले बोरवेल: मौत के कुएं बने किसानों की लापरवाही
राजस्थान में बोरवेल हादसे आम होते जा रहे हैं। खेतों में पुराने और सूखे बोरवेल के पाइप निकालने के बाद उन्हें खुले छोड़ दिया जाता है। कोटपूतली ही नहीं, जयपुर की 100 किमी परिधि में 20 गांवों में ऐसे ‘मौत के कुएं’ खुले पड़े हैं। किसान इन्हें ढकने के बजाय छोड़ देते हैं, क्योंकि पाइप लगाने का खर्च एक लाख रुपये तक आ सकता है।
रेस्क्यू की भारी लागत: 5 करोड़ से ज्यादा खर्च
रेस्क्यू ऑपरेशन में रोजाना करीब 50 लाख रुपये खर्च होते हैं। कोटपूतली के रेस्क्यू में 5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए। इसमें 100 से ज्यादा जवान, 50 पुलिसकर्मी, और कई आधुनिक उपकरण लगाए गए। चेतना की जान तो नहीं बच सकी, मगर यह हादसा एक बार फिर हमारी लापरवाही को उजागर कर गया।
10 साल में 17 मौतें, फिर भी खुले हैं बोरवेल
पिछले 10 सालों में बोरवेल हादसों में 17 मासूमों की मौत हो चुकी है। अकेले 2024 में 3 मौतें हुईं और 2025 की पहली मौत चेतना की थी। हर बार ऐसी घटनाओं के बाद जागरूकता की बातें होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते।
अपील: सरकार … आमजन की जिम्मेदारी
नए साल पर सरकार और आमजन को यह प्रण लेना चाहिए कि बोरवेल हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएंगे।
सरकार: 3-6 महीने में प्रदेशभर के खुले बोरवेल बंद कराने के लिए टाइमलाइन बनाए।
जनप्रतिनिधि: सरपंच, विधायक, और सांसद अपने क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाएं और जरूरत पड़ने पर फंड का इस्तेमाल करें।
आमजन: अगर बोरवेल फेल हो जाए, तो 1000 रुपये का ढक्कन लगाकर उसे ढकें। यह किसी मासूम की जिंदगी बचा सकता है।
“चेतना का जीवन बच सकता था, अगर एक 1000 रुपये का ढक्कन लगाया गया होता। यह हादसा हमें जिम्मेदारी का पाठ सिखाता है।”
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