
धनखड़ ने रटंत संस्कृति की आलोचना करते हुए कहा, “कोचिंग सेंटर फैक्ट्री जैसे ढांचे में रचनात्मकता का गला घोंटते हैं। यह नई शिक्षा नीति की आत्मा के खिलाफ है।” ( Jagdeep Dhankhar)उन्होंने इन्हें कौशल आधारित प्रशिक्षण केंद्रों में बदलने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, “शिक्षा को अब अंक केंद्रित न बनाकर कौशल और समझ केंद्रित बनाना ही समय की मांग है।”
डिजिटल आत्मनिर्भरता ही नई देशभक्ति
उपराष्ट्रपति ने तकनीकी आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा, “अब लड़ाई भूमि या समुद्र में नहीं, बल्कि कोड और साइबर स्पेस में होगी। तकनीक में नेतृत्व करना ही सच्चा राष्ट्रवाद है।” उन्होंने कहा कि भारत को अपनी डिजिटल नियति खुद लिखनी होगी और युवाओं को तकनीकी संरक्षक बनना होगा। धनखड़ ने कहा कि रटंत पढ़ाई छात्रों को “बौद्धिक ज़ॉम्बी” बना रही है। उन्होंने चेताया कि नंबरों की दौड़ में जिज्ञासा और रचनात्मकता कुचल दी गई है।
विज्ञापनों पर फिजूलखर्ची
कोचिंग सेंटरों की भारी विज्ञापनबाजी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “ये होर्डिंग्स भले आकर्षक हों, पर हमारी आत्मा के लिए असहज करने वाले हैं। यह धन उन परिवारों से आता है जो बड़ी कठिनाई से फीस भरते हैं।” उपराष्ट्रपति ने युवाओं को रचनात्मकता, जिज्ञासा और तकनीकी नेतृत्व को अपना आदर्श बनाने का आह्वान किया।