
Dr. B.R. Ambedkar: डॉ.. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें आज भारत के संविधान निर्माता और पहले कानून मंत्री के रूप में जाना जाता है, आज 135 वाँ जन्मदिन मनाया जा रहा है। इस मौके पर राजनीतिक गलियारों में अब एक और बार पहुँच गया कि क्या असल में अंबेडकर संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष बनाए जाएंगे थे विरोध किया गया? हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के दो मुख्यमंत्री: भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु……………..नियुक्ति का विरोध किया था।
हालांकि, ऐतिहासिक तथ्यों पर नजर डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है। संविधान प्रारूप समिति में डॉ. अंबेडकर की नियुक्ति का सुझाव खुद नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने दिया था। (Dr. B.R. Ambedkar) प्रस्ताव संविधान सभा में जी.वी. मावलंकर द्वारा रखा गया, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। बेशक कुछ असहमति के स्वर हिंदू महासभा जैसे वर्गों से उठे, पर वे इतने मजबूत नहीं थे कि डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता पर कोई ठोस असर डाल सकें।
उच्च वर्ग का विरोध और सामाजिक असहजता
उच्च वर्ग का विरोध और सामाजिक असहजता…डॉ. भीमराव अंबेडकर दलित समुदाय से आते थे। उस दौर के रूढ़िवादी और जातिवादी समाज में यह बात कई लोगों को स्वीकार्य नहीं थी कि एक दलित व्यक्ति को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी जाए, जो पूरे देश के भविष्य की नींव रखे। कुछ उच्च वर्गीय नेताओं के मन में संविधान जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज की जिम्मेदारी लेने के लिए कुछ संदेह था। वे मानते थे कि एक अनुभवी नेता को चाहिए।
संविधान प्रारूप समिति में कुल 7 सदस्य
29 अगस्त 1947 को बनी संविधान प्रारूप समिति में कुल 7 सदस्य नियुक्त किए गए थे। इनमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर को अध्यक्ष बनाया गया। अन्य सदस्यों में एन. गोपालस्वामी आयंगर, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, के.एम. मुंशी, मोहम्मद सादुल्ला, बी.एल. मिटर (बाद में एन. माधव राव ने स्थान लिया), और देवी प्रसाद खैतान (जिनकी जगह बाद में टी.टी. कृष्णमाचारी ने ली) शामिल थे।
अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर और के.एम. मुंशी के नाम भी प्रारूप समिति के अध्यक्ष पद के लिए चर्चाओं में थे। ये दोनों संविधान निर्माण में विशेषज्ञता रखते थे, लेकिन डॉ. अंबेडकर की विधिक विद्वता, सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता और समग्र दृष्टिकोण के कारण उन्हें सर्वसम्मति से यह जिम्मेदारी दी गई।
नेहरू की भूमिका पर क्या कहते हैं दस्तावेज
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत किया, जो आगे चलकर संविधान की प्रस्तावना का आधार बना। उन्होंने विभिन्न समितियों में सक्रिय भूमिका निभाई। कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज यह नहीं दर्शाता कि नेहरू ने अंबेडकर की नियुक्ति का विरोध किया हो। इसके उलट, नेहरू और सरदार पटेल दोनों ने उन्हें संविधान सभा में शामिल करने के प्रयास किए।
बंगाल से अंबेडकर की एंट्री कैसे हुई?
कुछ समकालीन नेताओं का दावा है कि नेहरू अंबेडकर को संविधान सभा में नहीं चाहते थे, लेकिन इन दावों के पक्ष में कोई पुख्ता ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। जब अंबेडकर बॉम्बे से चुनाव हार गए, तो उन्हें बंगाल से संविधान सभा के लिए मनोनीत किया गया। यह कदम संभवतः नेहरू और अन्य नेताओं के समर्थन से ही संभव हो सका। डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा के लिए दो बार कोशिश की…पहले बॉम्बे प्रेसीडेंसी से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए, फिर संयुक्त बंगाल से निर्वाचित हुए। उनकी नियुक्ति की यह यात्रा बताती है कि राजनीतिक समझदारी और सहयोग से उन्हें वह मंच मिला, जिस पर उन्होंने भारत के लोकतंत्र की नींव रखी।
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