आचार्य सत्येंद्र दास… संत कबीरनगर से अयोध्या तक का सफर, संन्यास से रामलला के मुख्य पुजारी बनने की कहानी

Acharya Satyendra Das: अयोध्या की पावन धरा आज शोक में डूबी है। रामलला के अनन्य भक्त, उनकी सेवा में अपना संपूर्ण जीवन अर्पित करने वाले, श्रद्धेय आचार्य सत्येंद्र दास जी अब हमारे बीच नहीं रहे। 32 वर्षों तक रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में उन्होंने सेवा की, श्रद्धा और समर्पण की जोत जलाए रखी।

6 दिसंबर 1992 का वह ऐतिहासिक क्षण, जब बाबरी विध्वंस के दौरान उन्होंने रामलला को अपनी गोद में उठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया….उनकी निष्ठा और भक्ति का अमर प्रमाण है। (Acharya Satyendra Das)आज, जब उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली, तो मानो स्वयं अयोध्या के कण-कण ने एक संत की विदाई पर अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी।

उनका पार्थिव शरीर अब अयोध्या लौट आया है, जहां श्रद्धालु उन्हें अंतिम प्रणाम कर रहे हैं। सत्य धाम गोपाल मंदिर में उनकी पावन देह अंतिम दर्शन के लिए रखी गई है, लेकिन उनकी स्मृतियां और भक्ति की गूंज युगों-युगों तक रामनगरी में गूंजती रहेगी।

संत कबीरनगर में जन्मे, अयोध्या में बीता जीवन

आचार्य सत्येंद्र दास का जन्म 20 मई 1945 को उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले में हुआ था, जो अयोध्या से लगभग 98 किलोमीटर दूर स्थित है। उनका मन बचपन से ही भक्ति और आध्यात्म की ओर झुका हुआ था। उनके पिता अक्सर अयोध्या जाते थे, और सत्येंद्र दास भी उनके साथ वहां जाया करते थे।

राम जन्मभूमि से पहली जुड़ाव

अयोध्या में उनके पिता, संत अभिराम दास जी के आश्रम में आते-जाते थे। सत्येंद्र दास भी उनके साथ इस आश्रम में आने लगे। अभिराम दास वही संत थे, जिन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 की रात राम जन्मभूमि में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता जी की मूर्तियों के प्रकट होने का दावा किया था। इस घटना के बाद, राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव पड़ी।

सत्येंद्र दास, अभिराम दास जी की सेवा और उनकी भक्ति देखकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसी आश्रम में रहने का फैसला किया। 1958 में, मात्र 13 वर्ष की उम्र में, उन्होंने घर-परिवार को त्याग कर संन्यास ले लिया। उनके परिवार में दो भाई और एक बहन थीं, लेकिन उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन रामलला की सेवा में समर्पित कर दिया। जब उन्होंने अपने पिता को संन्यास लेने की बात बताई, तो उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, “मेरा एक बेटा घर संभालेगा और दूसरा रामलला की सेवा करेगा।”

संस्कृत की पढ़ाई… अध्यापन कार्य

संन्यास लेने के बाद, सत्येंद्र दास ने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। उन्होंने गुरुकुल पद्धति से शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत में आचार्य की उपाधि हासिल की। शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक शिक्षक के रूप में 1976 में नौकरी शुरू की। इस दौरान उनकी तनख्वाह 75 रुपये थी। इसके साथ ही वे राम जन्मभूमि में पूजा-पाठ करने भी जाया करते थे।

धीरे-धीरे, उनकी रामलला के प्रति भक्ति और सेवा को पहचान मिलने लगी। अध्यापन कार्य के साथ-साथ वे पुजारी के रूप में भी सेवा करते रहे, जहां उन्हें 100 रुपये वेतन मिलता था। 30 जून 2007 को संस्कृत महाविद्यालय से रिटायर होने के बाद, उनकी तनख्वाह बढ़कर 13,000 रुपये हो गई, जबकि सहायक पुजारियों को 8,000 रुपये मिलते थे।

राम मंदिर से आधिकारिक जुड़ाव

1992 में, राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी लालदास थे। उस समय, राम जन्मभूमि की देखरेख की जिम्मेदारी एक रिटायर्ड जज के पास होती थी। जब फरवरी 1992 में उस समय के रिसीवर जज जेपी सिंह का निधन हो गया, तो प्रशासन ने पुजारी लालदास को हटाने का निर्णय लिया।

इसी समय, तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और संत समाज के कई प्रमुख नेताओं से सत्येंद्र दास के अच्छे संबंध थे। इन संबंधों के चलते, 1 मार्च 1992 को सत्येंद्र दास को रामलला का मुख्य पुजारी नियुक्त कर दिया गया। उन्हें यह अधिकार भी मिला कि वे चार सहायक पुजारी नियुक्त कर सकते हैं। उन्होंने संतोष तिवारी सहित चार सहायक पुजारियों को नियुक्त किया।

राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास जो रामलला को गोद में लेकर भागे थे

बाबरी विध्वंस के दौरान रामलला की रक्षा

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान, सत्येंद्र दास वहीं मौजूद थे। उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा था कि उस दिन मंच पर लगे लाउडस्पीकर से घोषणा हुई कि पुजारी रामलला को भोग अर्पित कर पर्दा बंद कर दें। उन्होंने ऐसा ही किया, लेकिन कुछ ही समय बाद उत्तेजित कारसेवकों ने विवादित ढांचे पर चढ़कर उसे तोड़ना शुरू कर दिया।

सत्येंद्र दास उस समय मुख्य गुंबद के नीचे रामलला की मूर्तियों की रक्षा कर रहे थे। जब ढांचे पर हमला हुआ, तो बड़े गुंबद के बीचों-बीच एक बड़ा सुराख हो गया और वहां से मिट्टी और पत्थर गिरने लगे। हालात बिगड़ते देख, उन्होंने अपने सहायक पुजारियों संतोष और चंद्र भूषण के साथ मिलकर रामलला को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का निर्णय लिया।

उन्होंने भगवान राम, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियों को अपनी गोद में उठाया और वहां से भाग निकले। इसके बाद, रामलला को टेंट में रखा गया। यही रामलला, अब एक भव्य मंदिर में स्थापित हो चुके हैं।

समर्पित जीवन और अंतिम यात्रा

आचार्य सत्येंद्र दास ने अपना पूरा जीवन रामलला की सेवा में समर्पित कर दिया। 32 वर्षों तक उन्होंने राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवाएं दीं। 3 फरवरी 2025 को ब्रेन हेमरेज के कारण उन्हें लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 7 फरवरी की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।

उनका पार्थिव शरीर अयोध्या लाया गया, जहां उनके आश्रम सत्य धाम गोपाल मंदिर में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। उनके निधन से अयोध्या में शोक की लहर दौड़ गई, लेकिन उनकी भक्ति, निष्ठा और समर्पण हमेशा जीवंत रहेंगे।

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Bodh Saurabh

Bodh Saurabh, a journalist from Jaipur, began his career in print media, working with Dainik Bhaskar, Rajasthan Patrika, and Khaas Khabar.com. With a deep understanding of culture and politics, he focuses on stories related to religion, education, art, and entertainment, aiming to inspire positive change through impactful reporting.

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