
ACB Raid on Engineer: सरकारी महकमे में वर्षों तक जमे रहने वाले अफसरों की कार्यशैली और उनका असर किसी से छिपा नहीं है। जब किसी विशेष क्षेत्र में कोई अधिकारी लंबे समय तक टिकता है, तो यह सिर्फ इत्तेफाक नहीं होता…बल्कि उसके पीछे बड़े खेल की पटकथा लिखी जा रही होती है। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) के अधीक्षण अभियंता (एसई) अविनाश शर्मा का मामला भी कुछ ऐसा ही है।
एसीबी ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेडीए एसई अविनाश शर्मा के ठिकानों पर छापा मारा, तो उनके पास अकूत संपत्ति का खुलासा हुआ। 20 साल पहले आवास विकास(ACB Raid on Engineer) संस्था के विलय के बाद जेडीए में शामिल हुए शर्मा की पसंदीदा जगह जोन-11 रही। यह वही जोन है, जो अजमेर रोड से डिग्गी मालपुरा रोड तक फैला है और नई कॉलोनियों की बसावट के लिए प्राइवेट कॉलोनाइज़रों का स्वर्ग माना जाता है।
सरकारी फाइलों से लेकर प्रशासनिक गलियारों तक, अविनाश शर्मा की पकड़ मजबूत रही। जेईएन से लेकर एसई बनने तक उन्होंने इसी जोन में लंबा वक्त गुज़ारा। जब भी ट्रांसफर हुआ, उन्होंने फिर से वापस लौटने की पूरी जुगत भिड़ाई। आखिर क्यों जोन-11 ही उनका सबसे प्रिय ठिकाना बना रहा? क्या कारण था कि वे बार-बार यहीं लौटते रहे? इन सवालों के जवाब अब एसीबी की छापेमारी में खुल रहे हैं, जिसमें करोड़ों की बेनामी संपत्ति के राज़ सामने आ रहे हैं!
20 साल की नौकरी, 14 साल जोन-11 में—सिर्फ इत्तेफाक या बड़ा खेल?
2004-2010: जोन-11 में जेईएन रहे, जड़ें जमाईं।
2010-2013: एईएन बने, फिर भी जोन-11 नहीं छोड़ा।
2015: एक्सईएन बने, वापस जोन-11 लौटे और रिंग रोड प्रोजेक्ट मिला।
2019: पीआरएन में एक्सईएन का अतिरिक्त चार्ज मिला, प्रभाव बढ़ा।
2022: एसई बने और फिर से जोन-11 में पोस्टिंग ले ली, एक्सईएन के कार्यों में भी हस्तक्षेप करने लगे।
चाकसू में छुपा काली कमाई का खजाना?
एसीबी की जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है…अविनाश शर्मा और उनके परिजनों के नाम चाकसू में प्रॉपर्टी निवेश किया गया है। टीम चाकसू नगर पालिका पहुंची और वहां गोविंदम एनक्लेव में कई संदिग्ध प्लॉटों के दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं।
सूत्रों की मानें, तो यह सिर्फ एक शुरुआत है। शर्मा की संपत्तियां कई और इलाकों में भी हो सकती हैं। एसीबी के डीएसपी नीरज गुरनानी के नेतृत्व में दस्तावेजों की बारीकी से जांच की जा रही है।
बेनामी संपत्तियों का बड़ा जाल!
एसीबी को तलाशी में करोड़ों की चल-अचल संपत्तियों के प्रमाण मिले हैं। सिर्फ वेतन से इतना पैसा आना नामुमकिन था। दस्तावेजों के अनुसार, शर्मा और उनके परिजनों ने कई बेनामी संपत्तियों में भी निवेश कर रखा है।
जांच टीम इस पर ध्यान केंद्रित कर रही है कि आखिर कैसे एक सरकारी इंजीनियर ने इतने सालों में इतना बड़ा आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया? एसीबी की अतिरिक्त महानिदेशक स्मिता श्रीवास्तव के नेतृत्व में टीमें लगातार छानबीन कर रही हैं।
रिंग रोड प्रोजेक्ट में भी अविनाश शर्मा की भूमिका संदिग्ध रही है। एनएचएआई ने मुख्य ट्रैफिक कॉरिडोर बनाया, लेकिन डवलपमेंट कॉरिडोर का जिम्मा जेडीए के पास था। डिमार्केशन और सड़क निर्माण की प्रक्रिया में एक्सईएन के रूप में शर्मा ने अपनी मनमानी चलाई।
मनचाही फर्मों को टेंडर जारी किए गए
डिमार्केशन में हेरफेर कर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया गया।सरकारी बजट से बनीं सड़कें निजी प्रोजेक्ट्स की कीमत बढ़ाने के लिए इस्तेमाल हुईं। अब एसीबी इन सभी घोटालों की परतें खोलने में जुटी है। क्या अविनाश शर्मा के खिलाफ और भी बड़े खुलासे होंगे? क्या जोन-11 में बैठी भ्रष्टाचार की यह जड़ अब उखड़ पाएगी? जांच के नतीजे तय करेंगे कि सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता आएगी या फिर वही पुराना खेल जारी रहेगा!
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