
Jagdeep Dhankhar: वर्तमान समय की राजनीति का यही चेहरा है….जहां एक के लिए संकट, दूसरे के लिए अवसर बन जाता है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है।(Jagdeep Dhankhar) वहीं सत्ता पक्ष इस राजनीतिक चक्रव्यूह को तोड़ने की तैयारी में जुट गया है।
‘सरकार की कठपुतली’ अब बना ‘संविधान का रक्षक’?
कभी ‘सरकार की कठपुतली’ कहे जाने वाले धनखड़ को आज कांग्रेस और विपक्ष संविधान के रक्षक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। जयराम रमेश, प्रियंका चतुर्वेदी और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की प्रतिक्रिया यही बताती है कि अब उन्हें राजनीतिक रूप से धनखड़ में अवसर दिख रहा है।
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस दो न्यायाधीशों—जस्टिस वर्मा और जस्टिस यादव—पर महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहती थी। धनखड़ ने इसे लेकर रुचि दिखाई थी, जिससे सरकार सतर्क हो गई।
महाभियोग प्रस्ताव: रणनीति या धोखा?
तृणमूल कांग्रेस (TMC) का मानना है कि कांग्रेस ने जानबूझकर पहले महाभियोग प्रस्ताव को फेल कराया ताकि धनखड़ को बचाया जा सके। दोहराव दस्तखत की चूक को साज़िश बताया जा रहा है।
दिल्ली में हुई विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की बैठक में TMC की गैरमौजूदगी ने गठबंधन की अंदरूनी खींचतान को उजागर कर दिया। कांग्रेस और TMC के बीच अविश्वास खुलकर सामने आ रहा है।
असहमति का प्रतीक बनें धनखड़?
कांग्रेस चाहती है कि यदि धनखड़ अब सरकार के खिलाफ कुछ बोलें तो विपक्ष को एक बड़ा नैरेटिव मिलेगा—“बीजेपी अपने भीतर असहमति नहीं बर्दाश्त करती।” इसके लिए सत्यपाल मलिक के उदाहरण का हवाला भी दिया जा रहा है।
सरकार तैयार, विपक्ष भी सतर्क
सरकारी सूत्र बताते हैं कि एनडीए पहले से ही इसके जवाब की रणनीति पर काम कर रहा है। उसे इस बात का अंदेशा था कि धनखड़ की स्वतंत्रता सरकार के नैरेटिव को नुकसान पहुंचा सकती है।
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे सिर्फ स्वास्थ्य या निजी कारण नहीं हो सकते। यह राजनीति का वो मोड़ है जहां सत्ता और विपक्ष दोनों अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं। पर असली सवाल है — क्या धनखड़ अब विपक्ष के लिए अवसर बनेंगे या फिर एक और मोहरा साबित होंगे?
देश देख रहा है, और रहस्य परत-दर-परत खुल रहा है…
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