Ram Bhadracharya statement: जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित 9 दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कश्मीर के मुद्दे पर अपने जोशीले विचार प्रस्तुत किए। (Ram Bhadracharya statement: )उन्होंने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसे देश से कोई अलग नहीं कर सकता। रामभद्राचार्य ने अपने त्रिदंड की शक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत माता की सुरक्षा के लिए वे हर संभव कदम उठाएंगे और भारत पर बुरी नजर डालने वालों को करारा जवाब देंगे। उनके इस बयान ने श्रोताओं में देशभक्ति की भावना को और प्रबल कर दिया। आइए, जानते हैं रामभद्राचार्य के इस संबोधन की मुख्य बातें और उनका ऐतिहासिक संदर्भ।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के बयान का विरोध
जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित 9 दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन रामभद्राचार्य ने ज्योतिष मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के कश्मीर में धारा 370 बहाल करने को लेकर दिए गए बयान का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, “अभी एक व्यक्ति का बयान है, जिससे मैं काफी दुखी हुआ। वह व्यक्ति खुद को शंकराचार्य कहता है। मैं कहूंगा वह शंकराचार्य भी नहीं है। वह मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है। उस व्यक्ति ने बयान दिया कि कश्मीर में धारा 370 बहाल कर दी जाए। धारा 370 खिलौना है क्या, जो बहाल कर दो। ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। जयपुर के श्रोता समेत देश का शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा, जो कश्मीर से धारा 370 हटाने पर आपत्ति करेगा।”
पाक अधिकृत कश्मीर पर दावा
रामभद्राचार्य ने आगे कहा, “अब धारा 370 की बात मत करो। थोड़े दिन में ही पाक अधिकृत कश्मीर भी हमारा होगा। अब वह दिन दूर नहीं जब विश्व के नक्शे से पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाएगा। जो धारा 370 की बात करते हैं न, उनको संविधान का ज्ञान नहीं है। न कश्मीर से 370 की धारा निकल गई उसके बारे में। हमारे ही कश्मीर में हम वंदे मातरम नहीं कह सकते थे। हम वहां कोई होटल नहीं खरीद सकते थे। कोई जमीन नहीं खरीद सकते थे। वहां कुछ कर नहीं सकते थे। धारा 370 हटने के बाद हमें यह अधिकार मिला कि देश का कोई भी नागरिक अब वहां जमीन खरीद सकता है।”
बच्चों के नाम सोच समझकर रखें
रामभद्राचार्य ने अपने संबोधन में बच्चों के नाम रखने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, “आजकल बच्चों का नाम कुछ भी रख देते हैं। पहले बड़े लोग बच्चों का नाम रखते थे और बच्चों में वह गुण आ जाता था। मेरा बचपन का नाम मेरी माताजी ने गिरिधर लाल रखा था। इसका अर्थ होता है पर्वत को उठाने वाला। मैंने पत्थर वाला पर्वत धारण नहीं किया। हमने दिव्यांगों को देश में सम्मान दिलवाने का काम किया। हमने भारत में सबसे पहले विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की। मैंने ज्ञान रूपी पर्वत को धारण किया। मैं जब तक जीवित रहूंगा हिंदुओं के स्वाभिमान को कम नहीं होने दूंगा।”